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यादें

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9607
आईएसबीएन :9781613015933

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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।


भूमिका

प्रकृति ने सदियों से ही मानव को एक अनोखा उपहार दिया है, वह है सोचने समझने का। जो कि उसे अन्य जीवों से पृथक करता है। हर मनुष्य की अपनी एक अलग सोच है, रहने-सहने का अलग ढंग है। खाने-पीने और पहनने का भी अपना ही एक अलग तरीका है। यहां तक की उसकी सोच भी एक-दूसरे से अलग ही होती है। यहां पर आने वाले हर मनुष्य का सोचने का तरीका भी अलग है। कोई अपने बारे में सोचता है और कोई पूरे देश के बारे में सोचने वाला होता है। कोई मानव कल्याण के लिए अपने आपको अर्पित कर देता है तो कोई अपने परिवार तक ही सीमित रहता है।

यादें नामक यह पुस्तक भी मैंने आज तक के अपने समस्त जीवन पर आधारित अपनी रचनाओं को अर्पित कर लिखी है। इस पुस्तक में प्रकृति के सौंदर्य का वर्णन किया है। आज की इस भागदौड़ की जिंदगी में हम जाने क्या-क्या भूलते जा रहे हैं। हम अपने आदर्शों को भूलते जा रहे हैं। प्रकृति के साथ हमारा जो संबंध है, उसको भी हमने भुला दिया है। आज हम प्रकृति के साथ अन्याय करने पर तुले हैं जबकि प्रकृति हमें आज भी जीवन का सुख दे रही है।

दूषित वातावरण को शुद्ध करके हमें अनेक प्रकार के लाभ देती है। प्रकृति से हमें भिन्न-भिन्न प्रकार की औषधियां प्राप्त होती हैं। फल प्राप्त होते हैं, शुद्ध वायु मिलती है। प्रकृति से हमें सारा ज्ञान प्राप्त होता है। जब प्रकृति से हमें इतना कुछ प्राप्त होता है। हम सबका भी एक कर्तव्य है कि हमें प्रकृति के साथ संबंध बनाये रखना। इसके साथ हमारा तालमेल बनाने के लिए हमें इसको संतुलित बनाये रखना है। प्रदूषण की समस्या आज लगभग सभी देशों के सामने उभर कर आ रही है। इस प्रदूषण से निजात पाने के लिए हम सभी देशों को मिल-जुलकर इस आपदा से निपटना होगा। ताकि प्रकृति भी हम पर अपना मातृप्रेम हम लुटा सके।

आज तक जितने भी महापुरुष हुए हैं सभी का प्रकृति के साथ कहीं-ना-कहीं कोई-ना-कोई संबंध जरूर रहा है। सो हमें भी प्रकृति के साथ अपना संबंध स्थापित कर प्रकृति की सेवा करनी चाहिए। इसको जी-जान से प्रेम करना चाहिए।  

- नवल पाल प्रभाकर

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