कविता संग्रह >> यादें यादेंनवलपाल प्रभाकर
|
7 पाठकों को प्रिय 31 पाठक हैं |
बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
तेरी आँखें
तेरी आँखों की क्या तारीफ करूं?
ये हैं गहरी झील सनम
सोचता हूँ इनमें डूब मरूं।
तेरी आँखों की गहराई का
शायद कोई अन्त नहीं,
नीली-नीली इन आँखों में
समुन्द्र लगते हैं कई
दिल चाहता है समुन्द्र में उतर
जी भर आज गोते लगा लूं।
तेरी आँखों की क्या तारीफ करूं?
0 0 0
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book