कविता संग्रह >> यादें यादेंनवलपाल प्रभाकर
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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
दुल्हन सी सजी धरती
दुल्हन सी सजी हुई
दिखाई देती है पृथ्वी।
हरियाली रूपी इसके वस्त्र
सुगन्ध वाला छिडक़ा है इत्र
जानवर सारे इसके आभूषण
मोती इसके नाग, देव व किन्नर
लगती है जवान हमेशा
लगती है महकी-महकी।
दुल्हन सी सजी हुई
दिखाई देती है पृथ्वी।
श्वेत चांदनी जब इस पर गिरती
और ज्यादा है यह निखरती
देख इसको चांदनी अखरती
इसको चांदनी खूब निरखती
धरती चंचल हिरणी की तरह
लगती है बहकी-सी बहकी।
दुल्हन सी सजी हुई
दिखाई देती है पृथ्वी।
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