कविता संग्रह >> यादें यादेंनवलपाल प्रभाकर
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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
आज का किसान
आज का किसान
बन गया है हैवान
छिडक़ खेतों में जहर
बना रहा भूमि वीरान।
चारों तरफ थी जो वह
जीवन से भरी हरियाली
आज बनी है वह देखो
झूठी शान हमारी निराली
हर खेत में कांटे बिखेरती
साथ चली है यह विज्ञान।
छिडक़ खेतों में जहर
बना रहा भूमि वीरान।
खेतों में डाल अनतुला
उर्वरक अपने हाथों से
उगाता है फ सल ज्यादा
अपने ही मन से
करता है देखभाल
बनकर के अनजान।
छिडक़ खेतों में जहर
बना रहा भूमि वीरान।
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