धर्म एवं दर्शन >> श्री दुर्गा सप्तशती श्री दुर्गा सप्तशतीडॉ. लक्ष्मीकान्त पाण्डेय
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श्री दुर्गा सप्तशती काव्य रूप में
।। ॐ श्रीदुर्गायै नम:।।
तृतीय अध्याय : महिषासुर वध
ध्यान
ॐ
दुति दमकति जनु वाल अरुन रवि
चमकत सहसनि।
अस्तन चन्दन रक्त लेप तन अरुनिम बसननि।।
विद्या वर जप माल अभय मुद्रा कर कमलनि।
विलसत मुख अरविन्द सुदीरध तहं त्रय नयननि।।
सीस सुधाकर संग लसत मुकुट जटित जिन मनि रतन।
राजति कमलासन सदा करहु त्रिनयना कर भजन।।
अस्तन चन्दन रक्त लेप तन अरुनिम बसननि।।
विद्या वर जप माल अभय मुद्रा कर कमलनि।
विलसत मुख अरविन्द सुदीरध तहं त्रय नयननि।।
सीस सुधाकर संग लसत मुकुट जटित जिन मनि रतन।
राजति कमलासन सदा करहु त्रिनयना कर भजन।।
महिषासुर की सेन हति, नासेउ असुर निकाय।
अपर निसाचर मरन अब, सुतु भुआल चित लाय।।१।।
कह
मुनीस लखि सेन विलापा।
चिक्षुर कुपित लोक तिहुं कांपा।।
सेनापति महिषासुर केरा।
जुद्ध हेतु जगदम्बहिं घेरा।।
लाग करन खल वान प्रहारा।
मनहुं मेरु गिरि पर जल धारा।।
क्रोधवन्त तब भई भवानी।
काटी धनुष धुजा महरानी।।
बान बेधि हय सारथि मारा।
विकल तमीचर करि चितकारा।।
धनु रथ अश्व सारथी हीना।
धावा असुर ढाल असि लीना।।
सिंह-सीस मारा असि घोरा।
देविहिं बांह प्रहार कठोरा।।
देवि सक्ति मारत असि टूटी।
क्रोधवंत निसिचर कर छूटी।।
तब लीन्हेसि खल चण्ड त्रिसूला।
मारा चहसि मातु जगमूला।।
चला त्रिसूल करत परगासा।
सूर्य पिण्ड मनु गिरत अकासा।।
चिक्षुर कुपित लोक तिहुं कांपा।।
सेनापति महिषासुर केरा।
जुद्ध हेतु जगदम्बहिं घेरा।।
लाग करन खल वान प्रहारा।
मनहुं मेरु गिरि पर जल धारा।।
क्रोधवन्त तब भई भवानी।
काटी धनुष धुजा महरानी।।
बान बेधि हय सारथि मारा।
विकल तमीचर करि चितकारा।।
धनु रथ अश्व सारथी हीना।
धावा असुर ढाल असि लीना।।
सिंह-सीस मारा असि घोरा।
देविहिं बांह प्रहार कठोरा।।
देवि सक्ति मारत असि टूटी।
क्रोधवंत निसिचर कर छूटी।।
तब लीन्हेसि खल चण्ड त्रिसूला।
मारा चहसि मातु जगमूला।।
चला त्रिसूल करत परगासा।
सूर्य पिण्ड मनु गिरत अकासा।।
मां काली निज सूल तें कियो हजारनि खण्ड।
पुनि बेधा निसिचर हृदय, मरा असुर बरिबण्ड।।२।।
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