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धर्म एवं दर्शन >> श्री दुर्गा सप्तशती

श्री दुर्गा सप्तशती

डॉ. लक्ष्मीकान्त पाण्डेय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :212
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9644
आईएसबीएन :9781613015889

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श्री दुर्गा सप्तशती काव्य रूप में


।। ॐ श्रीदुर्गायै नम।।

छठा अध्याय : धूम्रलोचन-वध

ध्यान

ॐ नागराज पै राजि फनिनि फनमनि की माला।
तन दुति बढ़त उदोत कण्ठ मनिमाल बिसाला।।
भानु तुल्य है प्रभा नयन त्रय सोभा धारी।
अर्ध चन्द्र सिर सोह मुकुट की छबि अनुहारी।।
कुम्भ कमल माला तथा मुण्ड सदा कर महं धरे।
भैरव अंक निवासिनी पद्मा का चिन्तन करे।

विहंसि वचन देवी कहत, उपज असुर उर कोह।
गवना सुंभ समीप खल, देवि हिमसिखर सोह।।१।।

मेधा मुनि पुनि कहेउ विचारी।
बोला दूत बचन विस्तारी।।
जगदम्बा जो कहा बुझाई।
असुरराज सन सब समझाई।।
तासु वचन सुनि अति खिसिआना।
बोला सुंभ सहित अभिमाना।।
तुम धूम्राक्ष सेन संग जावहु।
केश पकरि खींचत लै आवहु।।
दुष्टा नारि आनु बरिआई।
जे अवरोधहिं मारहु जाई।।
देव यक्ष नर अरु गन्धर्वा।
बाधा देत हतहु तुम सर्वा।।
चला धूमलोचन लै सेना।
बोले मुनि पुनि आगिल बैना।।
साठ हजार असुर बलवंता।
सेन साजि खल चला तुरंता।
उहाँ गिरि सिखर देवि विराजति।
त्रिभुवन दिव्य तेज तें लाजति।।

कहत धूमलोचन असुर, जगमातुहिं ललकारि।
मानि वचन मम संग चलहुं, विलब न लावहु नारि।।२।।

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