धर्म एवं दर्शन >> श्री दुर्गा सप्तशती श्री दुर्गा सप्तशतीडॉ. लक्ष्मीकान्त पाण्डेय
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श्री दुर्गा सप्तशती काव्य रूप में
।। ॐ श्रीदुर्गायै नमः।।
बारहवां अध्याय : देवीचरित्र का माहात्म्य
ध्यान
ॐ
बिज्जुलता जिमि छटा केहरी कन्धर
आसन।
खड्ग खेट कर धारि कुमारी मानत शासन।।
चक्र गदा धनु बान ढाल असि पास भुजनि में।
वारन मुद्रा धारि भयकरा सोहति रन में।।
अग्निपुंज सम देह है, तीन नयन सोहत सदा।
सीस सुधाकर मुकुट जिमि दुर्गे मां उर वसु मुदा।।
खड्ग खेट कर धारि कुमारी मानत शासन।।
चक्र गदा धनु बान ढाल असि पास भुजनि में।
वारन मुद्रा धारि भयकरा सोहति रन में।।
अग्निपुंज सम देह है, तीन नयन सोहत सदा।
सीस सुधाकर मुकुट जिमि दुर्गे मां उर वसु मुदा।।
बिहंसि बचन कह अम्बिका, सुनहु सकल सुरवृन्द।
सब तजि जे जन मोहिं भजहिं, कटहिं सकल भवफन्द।।१।।
नित
यह अस्तुति पढ़ै हमारी।
तासु देहु सब संकट टारी।।
मधु कैटभ विनास कर गाथा।
महिषासुर वध पुनि तेहिं साथा।।
जेहि विधि सुंभ-निसुंभ विनासा।
लहत कृपा जन मम पुर वासा।।
अष्टमि तिथि नवमी वा चौदस।
सुने चरित राखे निज मन बस।।
पाप कलुष नहिं निकट निवासा।
होत दुरित संकट कर नासा।।
लहत सुसम्पति सुख घर माहीं।
दारिद कबहुं निकट नहिं जाहीं।।
मातु कृपा प्रियजन संयोगा।
कुल परिवार विभव अरु भोगा।।
तासु देहु सब संकट टारी।।
मधु कैटभ विनास कर गाथा।
महिषासुर वध पुनि तेहिं साथा।।
जेहि विधि सुंभ-निसुंभ विनासा।
लहत कृपा जन मम पुर वासा।।
अष्टमि तिथि नवमी वा चौदस।
सुने चरित राखे निज मन बस।।
पाप कलुष नहिं निकट निवासा।
होत दुरित संकट कर नासा।।
लहत सुसम्पति सुख घर माहीं।
दारिद कबहुं निकट नहिं जाहीं।।
मातु कृपा प्रियजन संयोगा।
कुल परिवार विभव अरु भोगा।।
रिपु नृप सस्त्रनि दस्युदल, अग्नि ज्वाल जलरासि।
त्रासत नहिं तेहिं कबहुं पुनि, नहिं कोउ सकत बिनासि।।२।।
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