लोगों की राय

धर्म एवं दर्शन >> श्री दुर्गा सप्तशती

श्री दुर्गा सप्तशती

डॉ. लक्ष्मीकान्त पाण्डेय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :212
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9644
आईएसबीएन :9781613015889

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

212 पाठक हैं

श्री दुर्गा सप्तशती काव्य रूप में


सब जीवनि बनि कान्ति बिराजी।
लक्ष्मी बनि सिगरे जग भ्राजी।।
ताहि नमामि-नमामि-नमामी।
नमो-नमो माता प्रनमामी।।
सब जीवनि महं जो मा वृत्ती।
सब के उर बसि बनि जो सुमृती।।
ताहि नमामि-नमामि-नमामी।
नमो-नमो माता प्रनमामी।।
सव जीवनि में तुम ही दाया।
तुष्टि रूप में सब जग पाया।।
ताहि नमामि-नमामि-नमामी।
नमो-नमो माता प्रनमामी।।
सब जीवनि में तुम बनि माता।
भ्रम रूपा जग जो विख्याता।।
ताहि- नमामि- नमामि- नमामी।
नमो-नमो माता प्रनमामी।।

अधिष्ठात्रि इन्द्रिय सकल, सारे जग में व्याप्त।
व्याप्ति देवि माता नमन, कीरति जग बिख्यात।।५।।
जै जै चेतनरूपिणी, सकल जगत मेँ वास।
नमो-नमो पुनि-पुनि नमन, चरन सरन की आस।।६।।
सुरपति सेए तव चरन, सहित सकल सुर वृन्द।
जस कीन्हेउ कल्यान तस, सुभ करु, हरु सुख द्वन्द।।७।।
जे जन सुमिरत भजत नित, हरति मातु सब कष्ट।
सोइ जननी संकट हरे, वरदायिनि यह इष्ट।।८।।

० ० ०

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

Maneet Kapila

Can you plz show any of the अध्याय