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			 धर्म एवं दर्शन >> श्रीकृष्ण चालीसा श्रीकृष्ण चालीसागोपाल शुक्ल
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श्रीकृष्ण चालीसा
      धर्मपुत्र जब द्रौपदी हारी, 
      परबस हुई आन वेचारी।
      पापी नगन करन जब लागे, 
      रुदन किया उस आपके आगे।।19।।
      
      उसके आपने चीर बढ़ाये, 
      दुर्योधन जैसे लज्जाए।
      कृपा आपकी जिस पर होवे, 
      जन तेरा काहे को रोवे।।20।।
      
      जय जय द्रौपदी कष्ट निवारण, 
      जय जय पाँडव भक्त उभारन।
      जय जय जय दीनन हितकारी, 
      जय जय बाल मुकुंद गिरधारी।।21।।
      
      जय अच्युत जय जय असुरारी, 
      जय जय चक्र सुदर्शन धारी।
      जय ईश्वर जय सर्व व्यापक, 
      जय योगेश्वर जय प्रतिपालक।।22।।
      			
						
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