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चमत्कारिक दिव्य संदेश

उमेश पाण्डे

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :169
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9682
आईएसबीएन :9781613014530

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सम्पूर्ण विश्व में भारतवर्ष ही एक मात्र ऐसा देश है जो न केवल आधुनिकता और वैज्ञानिकता की दौड़ में शामिल है बल्कि अपने पूर्व संस्कारों को और अपने पूर्वजों की दी हुई शिक्षा को भी साथ लिये हुए है।


वे बातें जिन्हें सभी को करना चाहिए

नीचे कुछ अत्यन्त ही विशिष्ट बातों का वर्णन किया जा रहा है जिनका पालन हर व्यक्ति को अधिकतम सीमा तक अवश्य ही करना चाहिए-

¤ स्नान, सन्ध्या, जप, देवताओं का पूजन, वैश्यदेव और अतिथि सत्कार ये 6 कर्म नित्य करने चाहिए।

¤ सूर्योदय से प्राय: 1 घण्टा पहले ब्रह्ममुहूर्त होता है। इस समय सोना निषिद्ध है। इस कारण ब्रह्ममुहूर्त में उठकर नीचे लिखा मन्त्र बोलते हुए अपने हाथ देखें।

कराग्रे बसते लक्ष्मी: करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्।।

अर्थात् हाथों के अग्रभाग में लक्ष्मी, मध्य में सरस्वती और मूल में ब्रह्मा हैं। अत: सुबह में (उठकर) हाथों का दर्शन करें। पश्चात् नीचे लिखी प्रार्थना कर पृथ्वी पर पैर रखें।

समुद्रवसने देवि! पर्वतस्तनमण्डले।
विष्णुपत्नि! नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व मे।।

अर्थात्-हे विष्णुपत्नि! हे समुद्ररूपी वस्त्रों को धारण करने वाली तथा पर्वतरूप स्तनों से युक्त पृथ्वी देवि! तुझे नमस्कार है। मेरे पादस्पर्श को क्षमा करो! पश्चात् मुख धोकर कुल्ला करके, नीचे लिखे प्रात: स्मरण, तथा भजनादि करके, गणेशजी, लक्ष्मीजी, सूर्य, तुलसी, गो, गुरु, माता, पिता और वृक्षों को प्रणाम करें।

¤ यज्ञोपवीत कण्ठी कर दाहिने कान में लपेटकर वस्त्र या आधी धोती से सिर ढकें। वस्त्र के अभाव में जनेऊ को सिर के ऊपर से लेकर बालों तक रखें। आप दिन में उत्तर तथा रात्रि में दक्षिण की ओर मुखकर नीचे लिखा मन्त्र बोलकर मौन हो मल त्याग करें। यह नियम विशेष रूप से खुले में मल त्याग करने वालों के लिए है।

¤ सामने देवता दक्षिण में पितर और पीठ पीछे ऋषियों का निवास रहता है, इसलिए कुल्ला बाई ओर करें।

¤ मल त्यागने के बाद 12, मूत्र त्यागने के बाद 4 और भोजन के बाद 16 कुल्ले करने चाहिए।

¤ मुखशुद्धि किये बिना मन्त्र फलदायक नहीं होते। इसलिए सूर्योदय से पहले पूर्व, पश्चात् उत्तर अथवा दोनों समय ईशान (पूर्वोत्तर कोण) में मुख कर दंतुअन करनी चाहिए।

पद्म पुराण में कहा है-

मध्यमानामिकाभ्यां च वृद्धांगुष्ठेन च द्विजः
दन्तस्य धावनं कुर्यान्न तर्जन्या कदाचन।।

अर्थात् मध्यमा, अनामिका तथा अँगुष्ठ से दाँत साफ करें। तर्जनी अँगुली से न करें।

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