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चमत्कारिक दिव्य संदेश

उमेश पाण्डे

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :169
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9682
आईएसबीएन :9781613014530

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सम्पूर्ण विश्व में भारतवर्ष ही एक मात्र ऐसा देश है जो न केवल आधुनिकता और वैज्ञानिकता की दौड़ में शामिल है बल्कि अपने पूर्व संस्कारों को और अपने पूर्वजों की दी हुई शिक्षा को भी साथ लिये हुए है।


मूर्ख कौन

उज्जैन के महाराजा भोज एक दिन अपने महल में घूम रहे थे। उन्होंने देखा कि एक स्थान पर उनकी रानी किसी अन्य स्त्री से बातचीत कर रही थी। राजा कौतूहलवश वहीं चले गये और पूछ बैठे- 'क्या बातें हो रही हैं?  

रानी तुरन्त बोल पड़ी- ''अरे मूर्ख? यहाँ कहाँ?”

राजा बिना कुछ बोले वहाँ से चले गये और सोच में पड़ गये कि रानी तो हमेशा मेरा अत्यधिक सम्मान करती है। आज मूर्ख कहकर कैसे सम्बोधित किया ?

अगले दिन राजदरबार में जितने विद्वान पण्डित आये, राजा ने परेशानी में सबको मूर्ख कहकर सम्बोधित कहना शुरू कर दिया। सब लोग सोच में पड़ गये कि आज महाराज को क्या हो गया है जो सभी को मूर्ख कहे जा रहे हैं।

इतने में कालिदास का भी नम्बर आ गया। उनकी भी महाराज ने ''आओ मूर्ख, बैठो मूर्ख।, कहकर सम्बोधित करना शुरू कर दिया। कालिदास बैठे नहीं। उन्होंने एक श्लोक कहा, जिसका अर्थ था- दो व्यक्ति बात कर रहे हों, बीच में बोलने वाला मूर्ख होता है, दूसरों का उपकार करके न भूलने वाला व्यक्ति मूर्ख होता है। अपने ऊपर किये गये उपकार को भूल जाने वाला मूर्ख होता है।

महाराज को अब अपनी भूल का ज्ञान हो गया।

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