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चमत्कारिक दिव्य संदेश

उमेश पाण्डे

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :169
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9682
आईएसबीएन :9781613014530

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सम्पूर्ण विश्व में भारतवर्ष ही एक मात्र ऐसा देश है जो न केवल आधुनिकता और वैज्ञानिकता की दौड़ में शामिल है बल्कि अपने पूर्व संस्कारों को और अपने पूर्वजों की दी हुई शिक्षा को भी साथ लिये हुए है।


स्वरोदय विज्ञान

स्वर एक प्राचीन विज्ञान है जो हमें बताता है, कि हम अपनी श्वास की सहायता से किस प्रकार अपने प्राण को नियन्त्रित एवं संचालित कर सकते हैं। योगीश्वर भगवान शंकर द्वारा रचित इस स्वरोदय को हम तान्त्रिक पद्धति भी कह सकते हैं। ऐसा ग्रन्थों में लिखा है कि भगवान शिव ने सर्वप्रथम अपनी पत्नी पार्वती को स्वर योग का महत्व समझाया था।

साधना हेतु प्रत्येक साधक के लिए स्वर योग साधना की जानकारी होना बहुत जरूरी है।

यह बात बिल्कुल सत्य है कि हमारी श्वास प्रक्रिया का हमारी चेतना पर सूक्ष्म प्रभाव पड़ता है और इसी का विस्तृत अध्ययन करना ही स्वर योग की विषयवस्तु है।

स्वर योग के अनुसार हमारे तीन स्वर होते हैं- एक स्वर जो बाएँ नथुने से प्रवाहित होता है। दूसरा स्वर जो दाहिने नथुने से प्रवाहित होता है, और तीसरा स्वर जो दोनों नथुनों से प्रवाहित होता है। यह तीनों स्वर हमारे शरीर और मस्तिष्क को प्रभावित करते हैं, जिसके फलस्वरूप हमारे शरीर का पूरा नाड़ी संस्थान भी प्रभावित होता है।

जब बाएँ नथुने से श्वास का प्रवाह होता है, तब उस समय हमारा चित्त क्रियाशील होता है, और जब श्वास का प्रवाह दायें नथुने से होता है उस समय प्राण शक्तिशाली होता है, और जब श्वास का प्रवाह एक साथ दोनों नथुनों में समान रूप से होता है तब मानव का आत्म पक्ष प्रबल होता है। ऐसी स्थिति में जप ध्यान करना श्रेष्ठ रहता है। नासिका के भीतर चलने वाले इन तीन प्रवाहों को इड़ा, पिंगला, सुषुम्ना के नाम से भी जाना जाता है।

जब श्वास बाएँ नथुने से प्रवाहित होती है, तो उस समय इड़ा नाड़ी सक्रिय रहती है और जब श्वास दायें नथुने से प्रवाहित होती है तो उस समय पिंगला नाड़ी सक्रिय रहती है।

दाहिने नथुने से श्वास प्रवाह हमें धनात्मक ऊर्जा प्रदान करता है। जो सूर्य स्वर भी कहलाता है तथा बायाँ नथुना हमें ऋणात्मक ऊर्जा प्रवाहित करता है जो चन्द्र स्वर भी कहलाता है।

यह स्वर कुछ-कुछ समय के पश्चात् बदलते रहते हैं, अर्थात् कभी हमारा दाहिना स्वर चलता है, तो कभी बायीं या फिर मध्य स्वर ही चलता रहता है। मध्य स्वर जो सुषुम्ना नाड़ी भी कहलाता है, के प्रवाहित होने की स्थिति में दोनों ही नथुनों से श्वास प्रवाहित होती है।

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