व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> चमत्कारिक दिव्य संदेश चमत्कारिक दिव्य संदेशउमेश पाण्डे
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सम्पूर्ण विश्व में भारतवर्ष ही एक मात्र ऐसा देश है जो न केवल आधुनिकता और वैज्ञानिकता की दौड़ में शामिल है बल्कि अपने पूर्व संस्कारों को और अपने पूर्वजों की दी हुई शिक्षा को भी साथ लिये हुए है।
मन्दसौर के पशुपतिनाथ
भारत के हृदयस्थल मध्यप्रदेश के पश्चिमांचल में छोटा किन्तु अपने आप में बहुत बड़े इतिहास को समेटे हुए एक नगर है जो मन्दसौर के नाम से जाना जाता है। यह नगर प्राचीन काल में दशपुर नाम से जाना जाता था। यह नगर विन्ध्य तथा अरावली पर्वत श्रेणियों को थामे हुए मालव का सिंहद्वार तथा राजस्थान का सीमान्त प्रहरी है। गंगा रूपी शिवना नदी के उत्तर तट पर स्थित यह नगर 2405' अक्षांश तथा 7505’ पूर्व रेखांश पर समुद्र सतह से 1428 फीट की ऊँचाई पर अवस्थित है। म0 प्र0 के बड़े औद्योगिक नगर इन्दौर से सड़क मार्ग के साथ-साथ रेलवे लाईन से भी यह जुड़ा हुआ है।
दशपुर नगर ने अपने सुदूर अतीत से लेकर बर्तमान तक अनेक साम्राज्यों को बनते बिगड़ते देखा है जिनके प्रमाणों का संधान आज भी संस्कृत, पालि तथा प्राकृत साहित्य में, प्रतिमा-स्तम्भादि शिलालेखों में, कलापूर्ण शिल्पकलाओं में, गुफाओं तथा भित्तिचित्रों में और सिक्के-मुद्रा इत्यादि उपादानों और भग्नावशेषों में किया जा सकता है। मंदसौर के किले में संग्रहित अनेक प्राचीन भव्य अवशेषों को देखकर कोई भी व्यक्ति इस नगर के गौरवशाली इतिहास को समझ सकता है।
पौराणिक काल में चन्द्रवंशी सम्राट रन्तिदेव दशपुर के महाराजा थे। यह बात महाकवि कालिदास के मेघदूत नामक सुप्रसिद्ध संस्कृत महाकाव्य से तथा मल्लिकानाथ रचित 'रन्तिदेवस्य कीर्तिम्' से स्पष्ट होती है।
ई0 4 सदी के आसपास यहीं भागवत लिंगधारी साधुओं का एक विशाल मठ था। जैनाचार्य समन्त भद्रसूरि के प्रसंग में इसका विशेष उल्लेख मिलता है।
ई0 पूर्व 170 के आसपास दशपुर में मालवगणों का राज्य था। बाद में शकों ने भी यहाँ शासन किया।
गुप्तकाल को भारतीय इतिहास का स्वर्णयुग कहा जाता है। ई0 सं0 500-600 के बीच औलिकर नामक राजवंश, जो कि गुप्त-साम्राज्य के आधीन था, दशपुर में राज करता था।
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