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चमत्कारिक दिव्य संदेश

उमेश पाण्डे

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :169
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9682
आईएसबीएन :9781613014530

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सम्पूर्ण विश्व में भारतवर्ष ही एक मात्र ऐसा देश है जो न केवल आधुनिकता और वैज्ञानिकता की दौड़ में शामिल है बल्कि अपने पूर्व संस्कारों को और अपने पूर्वजों की दी हुई शिक्षा को भी साथ लिये हुए है।


दान की खासियत

एक राजा बड़े धार्मिक और दयालु थे, किन्तु उनसे भूल से कोई एक पाप हो गया। जब उनकी मृत्यु हो गई, तब उन्हें लेने यमराज के दूत आये। यमदूतों ने राजा को कोई कष्ट नहीं दिया। यमराज ने उन्हें इतना ही कहा कि वे राजा को आदरपूर्वक नरक के पास से आने वाले रास्ते से ले आवें। राजा की भूल से जो पाप हुआ था, उसका इतना ही दण्ड था।

यमराज के दूत राजा को लेकर जब नरकों के पास पहुँचे तो नरक में पड़े प्राणियों के चीखने, चिल्लाने, रोने का शब्द सुनकर राजा का हृदय घबरा उठा। वे वहाँ से जल्दी-जल्दी जाने लगे।

उसी समय नरक में पड़े जीवों ने उनसे पुकारकर प्रार्थना की-महाराज! आपका कल्याण हो। हम लोगों पर दया करके आप एक घड़ी यहाँ खड़े रहिये। आपके खड़े रहने से हम लोगों की जलन और पीड़ा एक दम दूर हो जाती है। हमें इससे बड़ा सुख मिल रहा है।

राजा ने उन नारकी जीवों की प्रार्थना सुनकर कहा- 'मित्रो! यदि मेरे यहीं खड़े रहने से आप लोगों को सुख मिलता है तो मैं पत्थर की भाँति अचल होकर यहीं खड़ा रहूँगा। मुझे अब यहाँ से आगे नहीं जाना है।'

यमदूतों ने राजा से कहा- 'आप तो धर्मात्मा हैं। आपके खड़े होने का यह स्थान नहीं है। आपके लिए तो स्वर्ग में उत्तम स्थान बनाये गये हैं। यह तो पापी जीवों के रहने का स्थान है। आप यहाँ से झटपट चलें।'

राजा ने कहा- 'मुझे स्वर्ग नहीं चाहिये। भूखे-प्यासे रहना और नरक की आग में जलते रहना मुझे बहुत अच्छा लगेगा, यदि मेरे अकेले दुःख उठाने से इन सब लोगों को सुख मिले। प्राणियों की रक्षा करने और उन्हें सुखी करने का जो सुख है वैसा सुख तो स्वर्ग या ब्रह्मलोक में भी नहीं है।'

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