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चमत्कारिक दिव्य संदेश

उमेश पाण्डे

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :169
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9682
आईएसबीएन :9781613014530

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सम्पूर्ण विश्व में भारतवर्ष ही एक मात्र ऐसा देश है जो न केवल आधुनिकता और वैज्ञानिकता की दौड़ में शामिल है बल्कि अपने पूर्व संस्कारों को और अपने पूर्वजों की दी हुई शिक्षा को भी साथ लिये हुए है।


अपनी बात सिद्ध करने हेतु प्राचीन दिव्य प्रमाण

आज के समय में अपनी बात को सिद्ध करने के लिए न्यायालयों में वादी अथवा प्रतिवादी को गवाहों इत्यादि का सहारा लेना पड़ता है। किन्तु प्राचीन भारत में, जबकि अभियोग काफी बड़े होते थे तब वादी और प्रतिवादी दोनों में से कोई एक परस्पर बातचीत करने अपनी रुचि के अनुसार दिव्य प्रमाण हेतु प्रस्तुत होता था और दूसरा सम्भावित शारीरिक अथवा आर्थिक दण्ड के लिए तैयार रहता था। तुला, अग्नि, जल, विष तथा कोष ये पाँच दिव्य प्रमाण धर्मशास्त्रों में कहे गये हैं। इनके बारे में ये भी वर्णित है कि एक हजार पण से कम के अभियोग में इन दिव्य प्रमाणों को ग्रहण न करावें किन्तु राजद्रोह और महापात के अभियोग में सत्पुरुष सदा इन्हीं प्रमाणों वहन करें।

धर्मशास्त्रों में यह भी वर्णित है कि 'शपथ ग्रहण करने वाले को अर्थात् दिव्य प्रमाण हेतु अपने आप को प्रस्तुत करने वाले को शुद्ध प्रमाणित होने पर उसे वादी से पचास पण दिलावें और दोषी प्रमाणित होने पर उसे दण्ड दें।'

न्यायाधीश दिव्य प्रमाण हेतु प्रस्तुत मनुष्य को पहले दिन उपवास रखवाता था। दूसरे दिन सूर्योदय के समय वस्त्र सहित स्नान करके फिर राजा और ब्राह्मणों के सम्मुख उससे दिव्य प्रमाण ग्रहण करने को कहता था। इन दिव्य प्रमाणों में क्या किया जाता था इसका वर्णन नीचे किया गया है-

तुला दिव्य प्रमाण- जो तराजू उठाना या तौलना जानते हों, ऐसे लोगों से अभियुक्त को तुला के एक पलड़े में बैठाकर दूसरे पलड़े में कोई मिट्टी या प्रस्तर का उतने ही वजन का टुकड़ा रखकर उससे उसको ठीक-ठीक तोलने को कहा जाता था। फिर जिस संनिवेश में वह बराबर तौला गया है उसमें सफेद खड़िया से रेखा करके उस व्यक्ति को उतार लिया जाता था। उतरने पर वह निम्नांकित प्रार्थना वाक्य पढ़कर तुला को अभिमन्त्रित करता था। सूर्य, चन्द्र, वायु, अग्नि, आकाश, भूमि, जल, हृदय, यम, दिन, रात्रि, दोनों संध्या काल और धर्म आप सब मनुष्य के वृत्तांत को जानते हैं। हे तुले। तुम सत्य का धाम (स्थान) हो, पूर्वकाल में देवताओं ने तुम्हारा निर्माण किया है। अत: कल्याणि! तुम सत्य को प्रकट करो और मुझे संशय से मुक्त कर दो। माता! यदि मैं पापी या अपराधी हूँ तो मेरा पलड़ा नीचे कर दो और यदि मैं दोष रहित हूँ तो मुझे ऊपर उठा दो।

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