व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> चमत्कारिक दिव्य संदेश चमत्कारिक दिव्य संदेशउमेश पाण्डे
|
4 पाठकों को प्रिय 139 पाठक हैं |
सम्पूर्ण विश्व में भारतवर्ष ही एक मात्र ऐसा देश है जो न केवल आधुनिकता और वैज्ञानिकता की दौड़ में शामिल है बल्कि अपने पूर्व संस्कारों को और अपने पूर्वजों की दी हुई शिक्षा को भी साथ लिये हुए है।
स्वरोदय विज्ञान के अनुसार सूर्य स्वर के प्रवाह में हमारे शरीर में अधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है। जिसके फलस्वरूप इस दौरान दुष्कर कार्य किये जा सकते हैं, और चन्द्र के प्रवाह में आय सम्बन्धी कार्यो में सफलता मिलती है। सुषुम्ना नाड़ी के प्रवाह में भजन, साधना, जप आदि आध्यात्मिक कार्य सिद्धिदायक हैं। इस प्रकार स्वरोदय के साधक सावधानीपूर्वक चन्द्र और सूर्य स्वर का अभ्यास करके समस्त सांसारिक कार्यों को अपनी श्वास और प्रश्वास की गति से जान सकते हैं। यात्रा करते समय आपका जो भी स्वर चलता हो, वही कदम पहले देहरी के बाहर निकालना चाहिए, इससे जिस कार्य हेतु आप बाहर जा रहे है उसमें सफलता मिलती है। घर से चलते समय आपका जो स्वर चलता हो, उसी हाथ से कोई वस्तु लेनी या देनी चाहिए, जिसके फलस्वरूप वह सब प्रकार की हानियों से बचता है। जो व्यक्ति दिन-रात अपनी उन्नति के लिए विचार करता है- जैसे व्यापार की उन्नति, नया मकान बनवाना, आभूषण बनवाना, वस्त्र सिलवाना आदि कार्य चन्द्र स्वर में ही करने चाहिए। गुरु पूजन में योगाभ्यास के समय भी सही स्वर फलदायक होता है। जब सूर्य स्वर चल रहा हो तो भूत, पिशाच, डाकिनी, बेताल, यक्ष, गन्धर्वों आदि की साधना, तन्त्र मन्त्र की साधना, स्त्री प्रसंग, युद्ध, शास्त्रार्थ, नवीन विद्याध्ययन तथा शत्रुओं से वार्ता आदि कार्य सिद्ध होते हैं। लिखने में, मारण, मोहन उच्चाटन में, स्तम्भन में, लेनदेन में, शस्त्र ग्रहण करने में सूर्य स्वर सिद्धिदायक होता है।
जब पल-पल में बायाँ स्वर या दाहिना स्वर चल रहा हो, या दोनों नथुनों से श्वास प्रवाहित हो रही हो तो उसे सुषुम्ना स्वर कहते हैं। यह स्वर काल रूप है तथा इतना खतरनाक है कि इसके प्रवाहित होने पर सभी कार्य नष्ट हो जाते हैं। तात्पर्य यह है कि इस स्वर प्रवाह में किये गये सब कार्य निष्फल होते हैं। अत: इस स्वर प्रवाह के समय ईश्वर का जप, ध्यान व आराधना में समय व्यतीत करना चाहिए।
हाँ, सुषुम्ना नाड़ी के चलते हुए हमारा कुण्डलिनी जागरण हो सकता है। हमें सदैव स्मरण रखना चाहिए कि कुण्डलिनी का जागरण बिना इसके सम्भव नहीं है।
अब प्रश्न यह उठता है कि यदि कोई कार्य हमें जिस स्वर विशेष में करना हो और उस समय वह स्वर न चल रहा हो, तब क्या करना चाहिए? इसके लिए हमें सम्बन्धित स्वर को बदलना होगा जोकि एक अत्यन्त ही साधारण विधि के द्वारा सम्पन्न किया जा सकता है। इस विधि के अन्तर्गत हमें जो स्वर प्रवाहित हो रहा हो, उसी तरफ करवट लेकर कुछ समय लेट जाना चाहिए। ऐसा करने से विपरीत स्वर प्रवाहित होने लगेगा।
अन्त में, मैं यही कहूँगा कि स्वरोदय ज्ञान से न केवल शरीर को ही पूर्ण स्वस्थ रखा जा सकता है, बल्कि इसकी सहायता से मन और आत्मा की उन्नति भी की जा सकती है।
¤ ¤ राजीव अग्रवाल
|