व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> चमत्कारिक दिव्य संदेश चमत्कारिक दिव्य संदेशउमेश पाण्डे
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सम्पूर्ण विश्व में भारतवर्ष ही एक मात्र ऐसा देश है जो न केवल आधुनिकता और वैज्ञानिकता की दौड़ में शामिल है बल्कि अपने पूर्व संस्कारों को और अपने पूर्वजों की दी हुई शिक्षा को भी साथ लिये हुए है।
कुछ मिश्रित उत्पात और शान्ति उपाय
प्राय: हर व्यक्ति के जीवन में उसे अनेक उत्पातों का समय-समय पर सामना करना होता है। ग्रह अथवा दैविक बाधाओं के परिणामस्वरूप जनित इन उत्पातों से उसके भौतिक शरीर को अथवा जहाँ से उत्पात होते हैं वहाँ के रहवासियों को अत्यन्त कष्ट का सामना करना पड़ता है। ऐसी परिस्थिति में यदि हम अपने कुछ प्राचीन ग्रन्थों पर नजर डालें तो हम पाते हैं कि उनमें ऐसे अनेक उपायों का वर्णन है जो न केवल सरल हैं बल्कि प्रभावी भी, जिन्हें सम्पन्न करके उत्पातों को शान्त किया जा सकता है। इनको सम्पन्न करने में किसी भी प्रकार की हानि भी नहीं होती है-
(1) जो व्यक्ति प्राय: दुःस्वप्नों से पीड़ित रहता है, जो स्वप्न में बहुत अधिक स्नान करता है, जो स्वप्न में प्राय: अपने को बहुत अधिक गहरे जल में डूबता हुआ देखता है, जो स्वप्न में मुण्डन करवाना देखता हो तथा जो स्वप्न में कच्चा माँस खाने वाले पशु-पक्षियों की पीठ पर बैठना देखता हो अथवा जो व्यक्ति सदैव यह अनुभव करता हो कि कोई शत्रु उसका पीछा कर रहा है अथवा जिसे सदैव मृत्यु भय बना रहता हो या जो अकारण ही खिन्न रहता हो- ऐसे किसी भी पीड़ित को किसी शुभ दिन तथा शुभ मुहूर्त में किसी नदी के संगमस्थल तथा 5 जलाशयों से लाई मिट्टी से लेपित कर स्नान कराने से यह दोष दूर होता है। हस्त, पुण्य, अश्विनी, मृगशिरा तथा श्रवण नक्षत्र इस हेतु शुभ कहे गये हैं।
(2) जिस कुँवारी कन्या को जल्दी वर नहीं मिल रहा हो अथवा जिस विवाहिता स्त्री को सन्तान प्राप्त न हो पा रही हो अथवा किसी क्षत्रिय को आचार्य पद नहीं मिल पा रहा हो तथा वैश्य को व्यापार में अथवा कृषक को खेती में लाभ न हो पा रहा हो ऐसे किसी भी उत्पात को शान्त करने हेतु सम्बन्धित व्यक्ति को 4 कलशों में जल भरकर उनमें से एक में 51 दूर्वा (दूब), 51 पत्र तुलसी, 21 पत्र बिल्व के डालने चाहिए। दूसरे कलश में 5 गाँठ हल्दी, 1 मुट्ठी नागर मोथा तथा किसी जलाशय से लायी गई थोड़ी मिट्टी डालनी चाहिए। तीसरे में 1 मुट्ठी सरसों तथा थोड़ा-सा चावल डालना चाहिए तथा चौथे कलश में 7 कूपों का जल मिलाना चाहिए। तदुपरान्त इन कलशों की पूरा कँकु अक्षत्र से पूजा करके क्रमश: चारों कलशों के जल को पृथक् कर उनसे स्नान कर लेना चाहिए। यह कार्य शुभ दिन एवं शुभ मुहूर्त में हो।
(3) जब देवताओं की प्रतिमाएँ नाचती, काँपती, जलती, शब्द करती, रोती, पसीना बहाती या हँसती हैं, तब प्रतिमाओं के इस विकार की शान्ति के लिए उनका पूजन एवं प्राजापत्य होम करना चाहिए। जब वृक्ष असमय में फल देने लगें तथा दूध और रक्त बहावें तो वृक्षजनित भौम-उत्पात होता है। वहाँ शिव का पूजन करके डस उत्पात की शान्ति करावें।
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