व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> चमत्कारिक दिव्य संदेश चमत्कारिक दिव्य संदेशउमेश पाण्डे
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सम्पूर्ण विश्व में भारतवर्ष ही एक मात्र ऐसा देश है जो न केवल आधुनिकता और वैज्ञानिकता की दौड़ में शामिल है बल्कि अपने पूर्व संस्कारों को और अपने पूर्वजों की दी हुई शिक्षा को भी साथ लिये हुए है।
एक दिन एक सन्त नगर में आए, राजा ने सन्त को आमन्त्रण दिया सन्त राजसभा में पधारे। राजा ने उनके पास भी धार्मिक प्रवचन सुना और अन्त में अपना वही महत्व का प्रश्न पूछा। ''गुरुजी! मेरा मोक्ष किस प्रकार से होगा?' सन्त बोले- 'आज हमको इस प्रश्न की चर्चा नहीं करनी, चार दिन में बराबर विचार करके तुमको जवाब दूँगा।' और फिर अपने निश्चित निवास स्थान पर सन्त चले गये। मध्य रात्रि में जब दो बजे, तब संत जागे और सीधे राजमहल की सीढ़ियाँ चढ़ने लगे। सन्त राजमहल की विशाल छत पर जाकर खड़े रहे, इधर राजा अपने शयन कक्ष में जाग रहा था, उसने छत पर किसी के चलने की आवाज सुनी। वह शीघ्र ही छत पर आया और जोर से चिल्लाकर बोला 'कौन है? शीघ्र ही सन्त राजा के पास आकर खड़ा हुआ। रात्रि में दो बजे सन्त को छत पर आया हुआ देखकर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। राजा के पास आकर सन्त बोले-राजाजी! मैं अपने साथ ऊँट लाया था, और मेरा वह ऊँट खो गया है अत: यहाँ इस छत पर से ढूँढ़ने आया हूँ। सन्त की इस बात को सुनकर राजा एकदम हँस पड़ा और बोला- 'अरे महात्मन्! आप इतने समझदार होने पर भी इतना भी नहीं समझ सकते, कि राजमहल की इतनी ऊँची छत पर ऊँट भला कैसे चढ सकता है? राजा की बात सुनकर तुरन्त ही सन्त बोले- तो क्या राजन्! राजमहल में बैठे-बैठे भी कभी मोक्ष मिलता होगा? मोक्ष प्राप्त करने के लिये तो राजसुखों, वैभवों का त्याग करके सन्त बनना पड़ता है, एवं उच्च कोटि का साधु जीवन जीना पड़ता है, ऐसे ही चर्चा करने से, सवालों को पूछने से मोक्ष कभी नहीं मिलता है। और समझदार राजा को यह बात अन्तर में उतर गई।
राजा दूसरे दिन सुबह में ही सन्त के चरणों में झुककर उनका शिष्य बन गया। अत: मोक्ष की साधना करने के लिए बड़ी महान साधना करनी पड़ती है। साधना किये बिना, पुरुषार्थ साधे बिना, कभी भी फल मिलता नहीं है, और उसमें भी मोक्ष प्राप्त करने के लिए तो धर्म का बहुत ही ऊँचे भाव से आचरण करना चाहिए, तब ही मोक्ष मिलता है।
¤ ¤ धनंजय जैन, मुम्बई
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