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चमत्कारिक दिव्य संदेश

उमेश पाण्डे

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :169
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9682
आईएसबीएन :9781613014530

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सम्पूर्ण विश्व में भारतवर्ष ही एक मात्र ऐसा देश है जो न केवल आधुनिकता और वैज्ञानिकता की दौड़ में शामिल है बल्कि अपने पूर्व संस्कारों को और अपने पूर्वजों की दी हुई शिक्षा को भी साथ लिये हुए है।

उसी समय वहाँ धर्मराज तथा इन्द्र आये। धर्मराज ने कहा- 'मैं आपको स्वर्ग ले जाने के लिए आया हूँ। अब आप चलें।'

राजा ने कहा- 'जब तक ये नरक में पड़े जीव इस कष्ट से नहीं छूटेंगे, मैं यहाँ से कहीं नहीं जाऊँगा।'

धर्मराज बोले- 'ये सब पापी जीव हैं। इन्होंने कोई पुण्य नहीं किया है। ये नरक से कैसे छूट सकते हैं? '

राजा ने कहा- 'मैं अपना सब पुण्य इन लोगों को दान कर रहा हूँ। आप इन लोगों को स्वर्ग ले जायें। इनके बदले मैं अकेले नरक में रहूँगा।'

राजा की बात सुनकर देवराज इन्द्र ने कहा- 'आपके पुण्य को पाकर नरक के प्राणी दुःखों से छूट गये हैं, देखिये, ये लोग अब स्वर्ग जा रहे हैं। अब आप भी स्वर्ग चलिये।'

राजा ने कहा- 'मैंने तो अपना सब पुण्य दान कर दिया। अब आप मुझे स्वर्ग में चलने को क्यों कहते हैं?

देवराज हँसकर बोले- 'दान करने से वस्तु घटती नहीं, बढ़ जाती है। आपने इतने पुण्यों का दान किया, यह दान इनसे बड़ा पुण्य हो गया। अब आप हमारे साथ पधारें।'

दुःखी प्राणियों पर दया करने से नरेश अनन्तकाल तक स्वर्ग का सुख भोगते रहे।

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