व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> चमत्कारिक दिव्य संदेश चमत्कारिक दिव्य संदेशउमेश पाण्डे
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सम्पूर्ण विश्व में भारतवर्ष ही एक मात्र ऐसा देश है जो न केवल आधुनिकता और वैज्ञानिकता की दौड़ में शामिल है बल्कि अपने पूर्व संस्कारों को और अपने पूर्वजों की दी हुई शिक्षा को भी साथ लिये हुए है।
शिव सर्व सहायक हैं। सभी कठिन परिस्थितियों में शिव को याद करते हैं, चाहे वे देव, दानव, नर, किन्नर कोई भी हों। भगवान शिव राजा भागीरथ की प्रार्थना पर देवनदी गंगा के वेग को अपने सिर पर धारण कर लेते हैं, तो देवासुर संग्राम के समय समुद्र से निकले रत्नों के बजाय 'विष' जिसे देव-दानव सभी व्याकुल थे, पी लेते हैं और विष के प्रभाव से कण्ठ के नीला हो जाने से नीलकण्ठ कहलाए। सती की मृत्यु के समय कैलाश पर्वत पर वे जब समाधिस्थ थे तब तारकासुर ने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। उसे वरदान था कि उसे शिव पुत्र ही मार सकेगा, पर शिव की पत्नी सती तो दक्ष प्रजापति के यज्ञ में जल चुकी थी अब शिव पुत्र भी कैसे होता। शिव ने लम्बी समाधि ले ली थी क्योंकि पुनर्विवाह भी नहीं चाहते थे। इसलिए देवताओं के अनुरोध पर कामदेव ने अपना प्रयास उन्हें रिझाने का किया जिससे वे कामदेव पर क्रोधित हो गए और तीसरे नेत्र को खोलकर कामदेव को भस्म कर दिया। देवताओं ने अनेकों प्रार्थनाएँ कीं।
कामदेव की पत्नी रति के विलाप से उनका हृदय पसीज गया और उन्होंने कामदेव को बिना शरीर (अनंग) के जीवनदान दिया। पार्वती से विवाह की सहमति दी जिससे उनके पुत्र कार्तिकेय उत्पन्न हुए जिन्होंने तारकासुर का संहार किया।
भगवान शिव को आशुतोष (शीघ्र प्रसन्न होने वाला) भी कहा जाता है। भस्मासुर पर प्रसन्न होकर उन्होंने जो वरदान दिया कि उसमें वे स्वयं ही फँस गए जिसका निस्तारण भगवान विष्णु ने बड़ी ही चतुराई से किया और भस्मासुर वरदान के प्रभाव से स्वयं ही भस्म हो गया। शिवजी पिनाकपाणि अर्थात् शिव शक्ति के स्वामी हैं और उन्होंने अनेकों बार देवताओं के शत्रुओं का दमन किया। महाभारत में उन्होंने अर्जुन को भी पाशुपत अस्त्र प्रदान किया था।
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