व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> चमत्कारिक दिव्य संदेश चमत्कारिक दिव्य संदेशउमेश पाण्डे
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सम्पूर्ण विश्व में भारतवर्ष ही एक मात्र ऐसा देश है जो न केवल आधुनिकता और वैज्ञानिकता की दौड़ में शामिल है बल्कि अपने पूर्व संस्कारों को और अपने पूर्वजों की दी हुई शिक्षा को भी साथ लिये हुए है।
गणेश तत्व का ज्ञान
गणेश शब्द का संधि-विच्छेद करने पर गण+ ईश दो शब्द होते हैं। गण शब्द का अर्थ है समूह और ईश का अर्थ स्वामी है अर्थात् गण का स्वामी। गण हैं देवगण, देवताओं के सेवक। इसके अतिरिक्त गण के दो अक्षर ग और ण हैं जिनका विश्लेषण इस प्रकार किया जा सकता है- ग - ज्ञानार्थ वाचक और ण निर्वाण वाचक है अर्थात् गणेश ज्ञान और निर्वाण के स्वामी हैं। यह परब्रह्म परमात्मा का पर्याय होता है। गणेश पुराण के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि गणेश परमात्मा स्वरूप हैं। उन्हीं से सम्पूर्ण जगत की उत्पत्ति हुई है। आदि मूल परमेश्वर का ही एक रूप श्री गणेश हैं।
श्री गणेश के जन्म कथानकों के आधार पर भी उन्हें देवों का देव गणपति कहा जाता है। वेदमन्त्रों में ॐ शब्द महत्वपूर्ण है। ॐ का अर्थ है सच्चिदानन्द का विकसित रूप। सभी पात्रों में यह आदि अक्षर है; मूल शब्द ब्रह्म रूप है। गणेश की मूर्ति की रचना भी ॐ से हुई है। ॐ में प्रथम भाग उदर, मध्य भाग शुण्डाकार दण्ड, अर्धचन्द्र दन्त और बिन्दु मोदक का प्रतीक है। गणेश जी की मूर्ति में जब ध्यान लगाते हैं तो मूर्ति के आनन में हमें ॐ का आकार प्रतीत होगा।
वेदमन्त्रों में गणेश जी को गणपति कहा गया है; गण हमारी रजोगुणी, तमोगुणी और सतगुणी वृत्तियों का समूह भी है। इन सबके स्वामी श्री गणेश हैं। इसी प्रकार गणेश जी गुणीश हैं; वे सब गुणों के ईश हैं। ईश्वर अपने गुण, ज्ञान व आनन्द के स्वरूप हैं। इन्हीं गुणों के ईश गणेश हैं; अत: साक्षात् ईश्वर हैं।
समस्त दृश्य-अदृश्य विश्व का वाचक ग तथा 'ण' अक्षर के द्वारा जितना मन, वाणी और तत्व रहित जगत् है; सबका ज्ञान मन और वाणी के द्वारा होता है। उसके स्वामी होने से गणेशजी सब देवों के देव हैं; देवों में अग्रगण्य हैं।
गणेश जी ब्रह्म स्वरूप हैं; यह अग्र उदाहरण से स्पष्ट होता है- श्री गणेश जी की आकृति की जो कल्पना की गई है या उनका जो रूप पुराणों में दिया गया है, उसके अनुसार उनका मुख गज के समान है। अत: उन्हें गजानन, गणपति कहते हैं। कण्ठ के नीचे का भाग मनुष्य जैसा है। इस प्रकार उनके शरीर में हाथी और मानव का सम्मिश्रण है। ग साक्षात् ब्रह्मा को कहते हैं योग के द्वारा जब मुनि अन्तिम योपांग-समाधि को सिद्ध करते हैं तो उस स्थिति में वे जिसके पास पहुँचते हैं उसे ग कहा जाता है। जिससे यह जगत् उत्पन्न होता है, उसे ज कहते हैं। दोनों अक्षरों से 'गज' बनता है। गज का अर्थ विश्व कारण होने से ब्रह्मा होता है। अत: गज ब्रह्म है तथा गणेश जी के कण्ठ से ऊपर का भाग ब्रह्म स्वरूप ही है।
¤ ¤ अनिल कुमार त्रिपाठी
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