धर्म एवं दर्शन >> बृहस्पतिवार व्रत कथा बृहस्पतिवार व्रत कथागोपाल शुक्ल
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बृहस्पतिवार के हेतु रखे गये व्रतों की कथा
बृहस्पतिवार के दिन उसे चार पैसे पड़े मिले। लकड़हारे ने कथा कही। उसी रात्रि को बृहस्पतिदेव ने उस नगर के राजा को स्वप्न में कहा-“हे राजा ! तुमने जिस आदमी को जेलखाने में बन्द किया है, वह निर्दोष है। वह राजा है उसे छोड़ देना। रानी का हार उसी खूँटी पर लटका है। अगर तू ऐसा नहीं करेगा तो तेरे राज्य को नष्ट कर दूँगा।”
इस तरह रात्रि के स्वप्न को देखकर राजा प्रातःकाल उठा और खूँटी पर लटका हार देखकर लकड़हारे को बुलाकर क्षमा मांगी तथा लकड़हारे को योग्य सुन्दर वस्त्र आभूषण देकर विदा किया।
बृहस्पतिदेव की आज्ञानुसार लकड़हारा अपने नगर को चल दिया। राजा अब अपने नगर के निकट पहुँचा तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ।नगर में पहले से अधिक बाग तालाब और कुएं तथा बहुत से धर्मशाला मन्दिर आदि बन गयी हैं। राजा ने पूछा यह किसका बाग और धर्मशाला है। तब नगर के सब लोग कहने लगे कि ये रानी और दासी के हैं। तो राजा को आश्चर्य हुआ और गुस्सा भी आया। जब रानी ने यह खबर सुनी कि राजा आ रहे हैं तो उसने दासी से कहा कि हे दासी ! देख राजा हमको कितनी बुरी हालत में छोड़ गये थे। हमारी ऐसी हालत देखकर वह लौट न जांय इसलिए तू दरवाजे पर खड़ी हो जा।
आज्ञानुसार दासी दरवाजे पर खड़ी हो गयी। राजा आये तो उन्हें अपने साथ लिवा लायी। तब राजा ने क्रोध करके अपनी रानी से पूछा कि यह धन तुम्हें कासे प्राप्त हुआ है? तब उन्होंने कहा कि हमें ये सब धन हमें बृहस्पतिदेव के इस व्रत के प्रभाव से प्राप्त हुआ है।
राजा ने निश्चय किया कि सात रोज बाद तो सभी बृहस्पतिदेव का पूजन करते हैं, परन्तु मैं रोजाना दिन में तीन बार कगानी कहा करूंगा तथा रोज व्रत किया करूंगा।
अब हर समय राजा के दुपट्टे में चने की दाल बंधी रहती तथा दिन में तीन बार कहानी कहता।
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