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चमत्कारिक पौधे

उमेश पाण्डे

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :227
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9687
आईएसबीएन :9781613014554

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प्रकृति में हमारे आसपास ऐसे अनेक वृक्ष हैं जो हमारे लिए परम उपयोगी हैं। ये वृक्ष हमारे लिए ईश्वर द्वारा प्रदत्त अमूल्य उपहार हैं। इस पुस्तक में कुछ अति सामान्य पौधों के विशिष्ट औषधिक, ज्योतिषीय, ताँत्रिक एवं वास्तु सम्मत सरल प्रयोगों को लिखा जा रहा है।

इसके फूल पीलास लिये हुए हरे रंग के होते हैं। मधुर सुगंध वाले होते हैं। इसके फूल अप्रैल-मई और गर्मी के दिनों में आते हैं। इसके फल अपने आप खुल जाते हैं। उनके अंदर केसरिया रंग के बीज होते हैं। जो बहुत सुंदर दिखते हैं। फल पहले हरे रंग के होते हैं। इसमें बीजों की संख्या 3 से  6 होती है। बीज आकार में मुनक्का के बीज से मिलते-जुलते हैं। यह बीज मालकांगनी के नाम से बाजार में मिलते हैं।

समस्त भारत वर्ष की पहाड़ी भूमि में, झेलम से पूर्वीय हिमालय प्रदेश में  6000 फीट की ऊँचाई तक, पूर्वी बंगाल, बिहार, आसाम, दक्षिण भारत एवं राजस्थान की अरावली पर्वत श्रेणियों में प्रचुर मात्रा में यह लता पाई जाती है। यह वैश्य वर्ण की लता है।

औषधिक महत्त्व

0 क्षय रोग में- इसके चांदी की के साथ प्रयोग करने से क्षयरोग में बहुत लाभ होता है।

0 जलोदर में- इसके काले तेल की 10 से लेकर 30 बूँद तक देने से जलोदर रोग का नाश होता है।

0 नासूर पर- नासूर और घाव पर इसके तेल के अथवा बीजों को पीसकर, थोड़ा सा गर्म करके लगाने से लाभ मिलता है।

0 बुद्धि बढ़ाने हेतु- 1-2 बूँद प्रतिदिन इस तेल का सेवन करने से बुद्धि बढ़ती है।

0 मस्तिष्क शोधन हेतु- मालकांगनी के बीजों से कोल्हू द्वारा मशीन द्वारा दबाकर इसका तेल निकाला जाता है तथा बीजों को कूटकर पानी में औंटाकर के भी तेल प्राप्त किया जाता है इस तेल का मर्दन लिंग पर करने से वह कड़ा हो जाता है।

0 त्वचा रोगों पर- इसके बीज रस में जीवाणुनाशक और जन्तु नाशक शक्ति होती है। अत: त्वचा रोगों पर भी यह प्रभावी है।

मालकांगनी का ज्योतिषीय महत्त्व

0 मंगल ग्रह की पीड़ा दूर करने हेतु बिल्व छाल, रक्त चंदन, रक्त पुष्प, सिंगरफ, मालकांगनी तथा मौलश्री को स्नान के जल में मिलाकर उस जल से स्नान करना लाभदायक होता है।

0 जालवन्ती, कूट, मालकांगनी, जव, सरसों, देवदारु, हल्दी तथा लोंध- इन सभी औषधियों के जल से स्नान करने से सवग्रहों की पीड़ा शांत होती है। स्नान किसी वृक्ष के नीचे अथवा किसी तीर्थ स्थल पर अथवा किसी पवित्र स्थान पर करना चाहिये।

मालकांगनी के ताँत्रिक उपयोग

0 मालकांगनी की जड़ को शुभ मुहूर्त में निकालकर उसे कपूर की धूनी देकर, कमर में बांधकर मैथुन करने से स्खलन काल में बहुत वृद्धि होती है।

0 किसी बच्चे की जीभ पर चाँदी की शलाका से मालकांगनी की एक बूँद कुछ दिनों तक नित्य लगाने से उसकी बुद्धि तेज होती है वह सुस्पष्ट बोलता है, उसकी संभाषण शक्ति बढ़ती है।

मालकांगनी का वास्तु में महत्त्व

वास्तु की दृष्टि से इसलता का घर की सीमा में होना शुभ होता है।

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