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जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद

क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद

जगन्नाथ मिश्रा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :147
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9688
आईएसबीएन :9781613012765

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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी


संगठनकर्ता आजाद


क्रान्तिकारियों के इतिहास में चन्द्रशेखर आजाद का नाम, एक चतुर संगठनकर्ता के रूप में सदैव स्मरणीय रहेगा। उनके प्रयत्न से बड़े-बड़े साहसी, वीर और काम के आदमी दल में भरती हो गए। उनमें से एक बड़ा चतुर मिस्त्री भी था, जो दल के लिए तरह-तरह के शस्त्र बनाया करता था।

इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत के क्रान्तिकारियों की कहानी बड़ी ही मार्मिक है। जो कष्ट और यातनाएँ इन वीरों ने सहन कीं, जिस तरह हंसते-हंसते मातृवेदी पर अपने प्राणों की आहुति दे डालीं, वह विश्व के इतिहास में अन्यत्र मिलना दुर्लभ ही है। ये लोग दिन भर मेहनत-मजदूरी करके, बड़ी कंजूसी से पेट भरते और तन ढकते थे। उसी कमाई में से धन बचाकर शस्त्र खरीदते और अन्य खर्चे चलाते थे। कभी शस्त्रों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने में उन्हें रेल का पहले या दूसरे दर्जे तक का किराया भी देना पड़ता था।

कई दिनों तक भूखे रहकर या केवल बिना चीनी की चाय पीकर रहने के अवसर तो बहुधा आते ही रहते थे। एक दो बार तो ऐसा भी हुआ कि महीनों तक उनके शरीर पर सिवाय लंगोट के कोई दूसरा वस्त्र ही नहीं रहा था।

एक बार 'आजाद' किसी सोच-विचार में बैठे हुए थे, तभी एक व्यक्ति ने आकर इन्हें दो हजार रुपए दिए।

''यह रुपए कैसे है?'' आजाद ने पूछा।

''हमें पता चला है, आजकल आपके माता-पिता बहुत कष्ट में हैं। उन्हें खाने-पीने तक का अभाव है। इधर आप देश-सेवा में लगे हुए हैं। इसलिए कुछ लोगों ने मिलकर यह रुपया इकट्ठा किया है। आप इस रुपये को अपने घर भेज दें।''

उस व्यक्ति की बात सुनकर आजाद का चेहरा खिल उठा। उस समय वे अपने दल के लिए रुपयों का प्रबन्ध करने की वात ही सोच रहे थे। ये रुपये सचमुच ही एक दैवी सहायता के रूप में उन्हें प्राप्त हो गये थे। उन्होंने मुस्कराकर उस व्यक्ति से कहा,  ''आपको इस सहायता के लिए बहुत-बहत धन्यवाद है। यह रुपया हमारे दल के काम आयेगा।''

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