जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजादजगन्नाथ मिश्रा
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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी
माँ की ममता
माता जगरानी देवी का शरीर सूखकर पिंजर हो रहा था। वह घर के एक कोने में
पड़ी-पड़ी सोच रही थी, ''नित्य सूर्य उदय होता है, रात होती है। दिन-रात का
यह चक्र चलते-चलते दो वर्ष से अधिक बीत चुके हैं, पर अभी तक चन्द्रशेखर
नहीं आया। मैं उसके लिए पेड़े लाकर रखती हूँ, वह सब सूख जाते हैं या खराब
हो जाते हैं तो फिर ले आती हूं। न जाने वह कब भूखा-प्यासा आ जाए! उसे रामू
हलवाई की दूकान के पेड़े मिलते कहाँ होंगे! उसे खाना भी मिलता होगा या
नहीं।''
''सुना है उसने और उसके साथियों ने सरकार का खजाना लूट लिया था। उनमें से कुछ को कालापानी हो गया है और चार को... फां... सी.... हरे राम, हरे राम, हरे राम, मेरे चन्द्रशेखर पर दया रखना। वह अभी नासमझ बच्चा है।'' उस दिन कह रहा था, ''माँ' भारत माता, सबकी माता है उसकी सेवा में अगर प्राण भी चले जायें तो कोई चिन्ता की बात नहीं है। इतना भोला लड़का है। यह भी नहीं जानता सब की माता के लिये वह जान देने को भी तैयार है और अपनी माता की उसे कोई चिन्ता नहीं है।''
''उसे क्या मालूम, जब वह देश-सेवा और बड़े-बड़े ज्ञान की बात कहता है तो मैं केवल उसे खुश रखने के लिए अपने कलेजे पर कितना बड़ा पत्थर रखकर, उसकी हां में हां मिलाती हूं।''
''मैं जानती हूँ वह बहुत जिद्दी है, उसे समझाना सब व्यर्थ है। उसकी खुशी में ही मेरी खुशी है। वह देश सेवा करे, जी भरकर करे किन्तु मुझे रोज अपना प्यारा-प्यारा मुख दिखला जाया करे! मैं चाहती हूँ, उसे सरकार से विरोध नहीं बढ़ाना चाहिये। देश-सेवा करना है, तो महात्मा गांधी का शिष्य होकर क्यों नहीं करता! इसके मार्ग से उनका मार्ग कहीं सरल है। कम से कम उसमें जान जाने का भय तो नहीं है।''
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