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जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद

क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद

जगन्नाथ मिश्रा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :147
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9688
आईएसबीएन :9781613012765

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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी

''इसका परिचय अभी पिछले दिनों हमारे साथी यतीन्द्रनाथ दास ने दिया था। वह तिहत्तर दिन का उपवास रखकर भले ही स्वर्ग सिधार गए, किन्तु इतनी बड़ी ब्रिटिश साम्राज्यशाही उन्हें उनके निश्चय से रत्ती भर भी डिगा नहीं सकी। वह अपनी जिद्द पर अटल रहे। क्या गुलाम कभी अपनी जिद्द पर रह सकता है! भले ही अत्याचारी अपने अत्याचारों के बल पर कुछ दिनों जमा रहे, किन्तु शहीद का बलिदान, देश की आत्मा में प्राणों का संचार कर देता है। ऐसे शहीदों का देश अधिक दिनों गुलाम नहीं रह सकता! ''

''बड़े आनन्द की बात है, अब हम तीनों के नाम भी उन्हीं शहीदों की सूची में लिखे जायेंगे। किन्तु हमारे बाद क्या होगा? दल का काम कैसे चलेगा?''

''ओह! अभी तो हमारा नेता चन्द्रशेखर आजाद जीवित है। आजाद सचमुच ही आजाद है। जब तक वह है, हमें किस बात की चिन्ता? उस जैसा संगठनकर्ता मिलना दुर्लभ है, वह अपनी प्रतिभा और चातुर्य से अनेकों भगतसिंह, राजग्रुरु और सुखदेव पैदा कर लेगा। उसके जीते जी देश से सशस्त्र क्रान्तिकारी दल मिट ही नहीं सकता।''

''किन्तु.... अब वह अकेला है। सरकार की सारी शक्ति उस अकेले को गिरफ्तार करने में लग जायेगी। आखिर संगठन करने और युवकों को सुशिक्षित करने में भी तो कुछ समय लगता ही है।''

''भगवान न करे, इसी बीच में... कहीं...  नहीं! ऐसा नहीं होगा। भगवान उस वीर की अवश्य रक्षा करेगा। इन खरीदे हुए गुलाम पुलिसवालों पर तो आजाद का बहुत गहरा आतंक छाया हुआ है। इनमें से किसी का साहस उसे गिरफ्तार करने का नहीं हो सकता। भला शेर की मांद में कहीं गीदड़ भी हाथ डाल सकता है!''

इतने में ही पास की कोठरी से आवाज आने लगी-

''सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,

देखना है, जोर कितना बाजुए कातिल में है?''

राजगुरु अपनी कोठरी में बैठे-बैठे मस्ती से गा रहे थे।

सुखदेव गाना सुनकर सोचने लगे, ''राजगुरु ठीक ही गा रहा है। क्या हम लोगों को फांसी पर चढ़ाकर सरकार भारत में आई हुई क्रान्ति की लहर को मिटा सकेगी?''

''वह जितने अधिक लोगों को बलि चढ़ायेगी, देश में उतने ही अघिक वीर शहीद होने के लिये उत्पन्न होते रहेंगे। अन्त में, देश के कोने-कोने में आवाज गूँज उठेगी -- 'नहीं रखनी सरकार जालिम, नहीं रखनी।' सुखदेव भी तालियां बजा-बजाकर आनन्द से गाने लगे। जेल के अन्य कैदियों ने अब तक राजगुरु का गाना बड़े ध्यान से सुना था। अब वे सुखदेव के गाने में भी आनन्द ले रहे थे।

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