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जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद

क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद

जगन्नाथ मिश्रा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :147
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9688
आईएसबीएन :9781613012765

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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी

''अगर मेरे दो-चार साथी भी और होते तो भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव को इस तरह फांसी पर लटकने के लिए, अव तक जेल में वन्द न रहने देता। किन्तु अब तो विवश हूं, कलेजा मसोस कर ही रह जाना पड़ता है।''

इसी समय जमुना में एक नाव सरस्वती घाट से इसी ओर आती हुई दिखाई पड़ी। उस पर मल्लाह के अतिरिक्त केवल एक व्यक्ति और बैठा था।

'शायद वह तिवारी है?' आजाद सोचने लगे।

धीरे-धीरे नाव किनारे के समीप आई। आजाद भी उसी की ओर आगे बढ़ चले। सचमुच वह तिवारी ही था। वह नाव से उतरा और हाथ जोड़कर बोला, ''पंडित जी प्रणाम। मुझे आने में कुछ देर अवश्य ही हो गई। इसके लिए मैं क्षमा चाहता हूं। किन्तु मैंने आपके जाने की सारी व्यवस्था ठीक कर ली है।''

''वह क्या? ''

''मैं अभी सेठ के पास से आ रहा हूं। उसकी नीयत खराब हो चुकी थी।''

''तुम्हें कैसे मालूम?''

'संयोग से कल शाम वह मुझे चौक में मिल गया था। मैंने उसे, उसके आज के वायदे की याद दिलाई तो वह कुछ बहकी-बहकी बातें करने लगा-कभी कहता था, ''अभी मेरे पास रुपये नहीं हैं।' कभी कहता, ''आजाद अभी इतने रुपये का क्या करेंगे? ''

''फिर?''

''मैंने किसी प्रकार उसे डरा-धमकाकर ठीक कर लिया है। फिलहाल वह चार हजार रुपया देने को तैयार हो गया है। जैसे भी हो वैसे, इस समय आप अपना काम चलाइये। धीरे-धीरे बाकी रुपया भी बाद में किसी तरह वसूल कर ही लिया जायेगा।''

''मुझे ले-देकर केवल एक तुम्हारा ही तो भरोसा रह गया है। संसार के सभी काम मित्रों के सहयोग से ही होते हैं। इस समय सिवाय तुम्हारे मेरा है ही कौन?'

आजाद की बात सुनकर तिवारी की अन्तर-आत्मा एक बार फिर धिक्कार उठी, 'अरे दुष्ट! इस भोले वीर तपस्वी के प्रति ही तू विश्वासघात करना चाहता है.. तू कहता..।''

''तू सब कुछ ठीक कर आया है? जंगल के राजा आजाद शेर को फंसाने के लिए जाल बिछाकर भी तुझे उसी शेर से यह कहते लज्जा नहीं आई कि तू ठीक कर आया है .... कायर शिकारी शेर को मारने का झूठा श्रेय लेने के लिए, घात लगाये बैठे हैं। अरे नीच! अब भी समय है, संभल जा। इस तपस्वी को जाल में न फँसा।''

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