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जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद

क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद

जगन्नाथ मिश्रा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :147
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9688
आईएसबीएन :9781613012765

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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी


उपसंहार


इसके बाद 23 मार्च सन् 1931 की शाम को 8 बजे सरदार भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव को लाहौर में फाँसी दे दी गई। उनके भी शव उनके घरवालों को नहीं मिले। रात में ही पुलिस के पहरे में रावी के तट पर जलाकर बहा दिये गए।

यद्यपि फाँसी का दिन 24 मार्च नियत था और नियमानुसार फाँसी सुबह के समय ही दी जानी थी किन्तु सरकार ने अपने ही नियमों को तोड़कर जनता में विद्रोह की आग फैलने के डर से एक दिन पहले ही चुपचाप फाँसी दे दी। इस प्रकार क्रान्तिकारी दल सदैव के लिए भारत से उठ गया।

सन् 1957 तक लोगों ने एक बुढ़िया को यह कहते सुना था,  ''चन्द्रशेखर आता होगा, उसके लिए पेड़े रखे हैं, उसे पेड़े बहुत अच्छे लगते हैं।''

वे और कोई नहीं, उसी वीर की जननी थीं। वे अपने प्रिय पुत्र के विरह में पागल हो गईं थीं। उसी पागलपन में उन्हें यह होश भी नहीं था कि उनका चन्द्रशेखर तो अब अमर हो चुका है। अब वह मनुप्यों के बीच में फिर कभी नहीं आएगा।

सुनते हैं हमारी राष्ट्रीय सरकार ने आजादी मिलने के कई वर्ष बाद - उस बुढ़िया के खाने के लिए, पन्द्रह रुपये महीने की पेन्शन बांध दी जिसे वे तीन-चार महीनों से अधिक न ले सकीं। प्रायः यह भी देखा गया है कि वीर कूटनीतिज्ञ नहीं होते। यही बात हमारे क्रान्तिकारियों के साथ भी थी। वे जितने वीर थे, उतने ही भोले थे। यही कारण है, उन्होंने छोटी-छोटी बातों के लिए भी वीरता दिखाकर अपने जीवन समाप्त कर डाले। फिर भी उनकी वीरता अद्वितीय थी। उसके समान उदाहरण विश्व के इतिहास में मिलना दुर्लभ है। उनके त्याग, तपस्या और देशभक्नि में किसी को भी क़ोई संदेह हो ही नहीं सकता। हमारी आज की स्वतन्त्रना का महल उन्ही वीरों के बलिदानों पर खड़ा है। वे ही इस महल की नींव के पत्थर थे।

आज हम भले ही उन वीरों के मार्ग को गलत कहने का दुस्साहस करें किन्तु सन् 1836 से लेकर सन् 1931 तक, 95 वर्ष की इस लम्वी अवधि में, उन्होंने जिस वृक्ष को लगाकर अपने खून से सींचा था भले ही वह काटकर फेंक दिया फिर भी उसकी जड़ें इतनी गहरी थीं कि समय पाकर उसमें अंकुर अपने-आप ही फूट निकले।

सन 1942 की क्रान्ति और 1945 का जल सेना का विद्रोह, जनता की उस उमड़ती हुई विद्रोही भावना का फल था जो सन् 1931 के इन वीरों के शहीद होने पर साम, दाम, दंड, भेद से दबा दी गई थीं।

यदि स्वतन्त्रता रूपी अंतरिक्ष में महात्मा गाँधी सूर्य हैं, पंडित जवाहरलाल नेहरू चन्द्रमा हैं.और दूसरे बड़े-बड़े नेता नवग्रह हैं तो चन्द्रशेखर आजाद भी अपने सप्तर्षि मंडल के साथ ध्रुव तारे के समान अपने स्थान पर अटल हैं।


।। समाप्त ।।

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