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जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद

क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद

जगन्नाथ मिश्रा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :147
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9688
आईएसबीएन :9781613012765

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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी

वह लूट क्या थी? ब्रिटिश सरकार को क्रांतिकारियों द्वारा एक प्रकार की खुली चुनौती थी। सरकार का गुप्तचर विभाग दिन-रात काम करने लगा। पूरी शक्ति लगाकर क्रांतिकारियों की खोज की जाने लगी। 25 अगस्त को दिन निकलने से पहले ही पुलिस ने उत्तर प्रदेश के उन सभी नगरों में छापे मारे, जहां उन्हें तनिक-सा भी सन्देह था। जगह-जगह पर गिरफ्तारियों का जाल-सा बिछा दिया गया। चन्द्रशेखर आजाद के अतिरिक्त उनके सभी साथी पकड़ लिए गए।

जोश में आकर कोई काम कर बैठना दूसरी वात है। किन्तु काम की सच्ची लगन तो कुछ और ही होती है। उन पकड़े जाने वालों में भी कुछ ऐसे निकले जो कच्चे थे। उन्होंने पुलिस की मार से घबराकर, दल के कई गुप्त स्थानों का पता दे दिया। इस पर देश-भर के क्रान्तिकारियों के बहुत से अड्डों को पुलिस ने खोज निकाला। हजारों क्रान्तिकारी जेलों में ठूंस दिये गए।

कई अदालतों में इन लोगों पर मुकदमे चलाये गए। उत्तर प्रदेश के बड़े-बड़े वकीलों ने बिना फीस लिए इन वीरों के मुकदमों की पैरवी की किन्तु सब व्यर्थ। जिन्होंने क्षमा मांग ली वे छोड दिये गए। कुछ को कालेपानी की सजा हुई। रामप्रसाद 'बिस्मिल', अशफाकउल्ला खां और उनके दो साथियों को फाँसी की सजा दी गई।

रामप्रमाद बिस्मिल बड़े अच्छे शायर थे। उनकी शायरी बडी जोशीली और देशभक्ति से ओत-प्रोत होती थी। फाँसी पर चढ़ने से पहले उनने अपने देशवासियों को संकेत देते हुए कहा था,  'होश में आ जाओ बुलबुलो, चमन खतरे में है।'

फाँसी का तख्ता तैयार था। जल्लाद, जेलर, डाक्टर और मजिस्ट्रेट सभी खड़े थे। चारो क्रान्तिकारियों को फाँसी देने के लिए लाया गया। उनके चेहरों पर मौत के भय का नाम-निशान नहीं था। वे तो मुस्कराते-झूमते चले आ रहे थे।

सबसे पहले रामप्रसाद बिस्मिल तख्ते पर चढ़े। जैसे ही उनके गले मे फाँसी का फन्दा डाला जाने लगा, उन्होंने अपना अन्तिम शेर पढकर सुनाया जो उर्दू साहित्य और क्रान्तिकारी इतिहास में चिरस्मरणीय रहेगा-

शहीदों  की  समाधि  पर  जुडेंगे  हर बरस  मेले
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा।

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