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जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद

क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद

जगन्नाथ मिश्रा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :147
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9688
आईएसबीएन :9781613012765

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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी

सिटी इन्सपेक्टर पुलिस के एक आदमी को लेकर स्वयं तिवारी से मिलने गया। वह आदमी तिवारी का मित्र वना हुआ था और कई दिनों से आजाद के बारे में उसके पीछे पड़ रहा था। उसने सिटी पुलिस इन्सपैक्टर से तिवारी का परिचय कराते हुए कहा, ''आप हैं हमारे परम मित्र और श्री चन्द्रशेखर आजाद के अत्यन्त घनिष्ठ तथा विश्वासपात्र तिवारीजी।''

इन्सपैक्टर ने तिवारी से हाथ मिलाते हुए कहा, ''मुझे आपसे मिलकर बड़ी खुशी हुई। मैं आपके पास बहुत बड़ी आशा लेकर आया हूं।''

''किन्तु इन्सपैक्टर साहब, यह देश के प्रति गद्दारी है।'' तिवारी ने कहा।

''यह केवल आपका भ्रम है। अंग्रेजों का साम्राज्य इतना विशाल है जिसमें सूर्य कभी अस्त नहीं होता। इसलिये सरकार से टक्कर लेना कोई हंसी-खेल नहीं है। अभी हमने और आपने देखा, गांधी जी के आन्दोलन से ऐसा मालूम होता था मानो अंग्रेज अब गये, तब गये। किन्तु उन्हें भी अपना आन्दोलन बन्द करना पड़ गया। क्रान्तिकारी दल पूर्ण रूप से नष्ट ही हो चुका है। केवल यह आजाद ही शेष रह गये हैं। सो बेचारे अकेले कब तक बचकर रह सकते हैं? कभी न कभी तो चक्कर में आयेंगे ही। केवल अन्तर यही है कि हमें और आपको ऐसा सुअवसर कभी प्राप्त नहीं हो सकेगा।''

''कैसा सुअवसर?''

''आजाद को जीवित या मरा पकड़वाने वाले को सरकार दस हजार रुपया इनाम देगी। हमारे हाथ में आया हुआ अवसर निकल जाने पर कोई दूसरा इनाम का लाभ उठायेगा।''

''आजाद मुझे मित्र मानते हैं और मुझ पर पूर्ण विश्वास करते हैं। मैं मित्र के प्रति कभी विश्वासघात नहीं कर सकता।''

''यह सब व्यर्थ की बातें है तिवारी जी! इस संसार में न कोई किसी का मित्र है और न रिश्तेदार। सबसे बड़ा सम्वन्धी तो रुपया है। यह जिसके पास होता है, उसी के सब होते हैं। दस हजार रुपये की रकम कम नहीं होती। इससे आपका जीवन सफल हो जाएगा।''

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