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जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद

क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद

जगन्नाथ मिश्रा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :147
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9688
आईएसबीएन :9781613012765

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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी

लालच ने कहा, ''अवसर हाथ से नहीं जाने देना चाहिये।'' अन्तर-आत्मा ने फिर पुकारा, ''तिवारी! तू लोक परलोक में कहीं भी मुंह दिखाने योग्य नहीं रहेगा। सभी तुझे देशद्रोही, विश्वासघाती, दुष्टात्मा कहकर पुकारेंगे.. केवल इतना ही नहीं, तेरी सन्तान तक भी देश-द्रोह के वंशजों के नाम से पुकारी जायेगी। तेरे पाप का फल तेरी पीढ़ी तक को भोगना पड़ेगा।'' पुलिस इन्सपैक्टर का चित्र फिर सामने आया, ''देखना! वायदा पक्का हो, नहीं तो हम और आप दोनों कहीं के नहीं रहेंगे। झूठा वायदा सरकार के प्रति धोखा समझा जायेगा।''

''धीरे-धीरे लालच ने तिवारी की अन्तर-आत्मा पर परदा डाल दिया। अब वह विवेक को कुंठित करके, झूठे तर्कों द्वारा मन को समझाकर, इंस्पैक्टर से किये अपने वायदे के पक्ष में ही सोचने लगा, ''आखिर इतनी बड़ी सरकार को भी तो धोखा देना ठीक नहीं है। मेरे वायदे पर ही भरोसा करके कल पुलिस का पूरा इंतजाम किया जायेगा। अगर अब मेरी ओर से कुछ भी धोखा हुआ तो पुलिस मुझसे शत्रुता ठान लेगी। फिर चन्द्रशेखर आजाद की जगह मुझे ही जेल में बन्द कर दिया जायेगा।''

उसके सामने पुलिस, जेल और तरह-तरह की यातनाओं के चित्र घूम गये। वह एकदम कांप उठा। तब तो मैं सचमुच ही कहीं का भी न रहूंगा.. पांच हजार रुपये ले लेने की पोल भी खुल जायेगी। चन्द्रशेखर आजाद, पुलिस और जनता सभी की दृष्टि में गिर जाऊंगा। इससे तो यही अच्छा है, पुलिस इन्सपैक्टर से जो वायदा किया है उसी पर दृढ़ रहूं। उसमे कम से कम और कुछ नहीं तो, आर्थिक लाभ तो है ही।'

इसी तरह कुछ देर और संकल्प-विकल्पों के बीच पड़े रहने के बाद, अन्त में लालच की ही विजय हुई। उस देश-द्रोही ने अपनी अन्तर-आत्मा की उठती हुई पुकार को हृदय के भीतर दबा दिया। वह आनेवाली सुबह में अपने कुत्सित कार्य को पूरा करने के लिए पूरी तरह से योजनायें बनाने लगा।''

''उधर सेठ पर क्रान्तिकारी दल का आठ हजार रुपया जमा है। परसों आजाद उससे रुपया माँगने गये थे। उनके साथ मैं भी था। मालूम पड़ता है, उसकी नियत बिगड़ गई है। शायद वह आजाद को रुपया देना नहीं चाहता है। क्योंकि वह जानता है कि क्रान्तिकारी दल तो अब समाप्त-सा ही हो चुका है। अकेला आजाद ही तो है। अगर मैं रुपया न दूं तो कोई मेरा क्या कर लेगा? फिर भी आजाद से वह डरता है, इसीलिए वह स्पष्ट मना नहीं कर सका। उसने भी आनेवाली कल को दोपहर तक रुपया देने का वचन दिया है।''

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