जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजादजगन्नाथ मिश्रा
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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी
चन्द्रशेखर पेड़े खाते हुए सोच रहे थे, माँ के प्रेम की समता संसार में कौन कर सकता है? मैंने अपने माता-पिता को कभी सुख नहीं दिया। किन्तु देश-सेवा का ब्रत ही ऐसा है, इसे अपनाने पर सभी कुछ छोड़ना पड़ता है। गुरुगोविन्द सिंह ने अपने पिता और चारो पुत्रों को भी बलिदान करा दिया। महाराणा प्रताप ने जीवन-भर जंगलों की खाक छानी। शिवाजी इतना बडा साम्राज्य स्थापित करके भी एक क्षण के लिये चैन न पा सके थे। इस युग में भी लोकमान्य तिलक, वीर सावरकर, लाला हरदयाल ने भी अंग्रेजों के अत्याचार सहन किये थे और दूसरे नेता भी सहन कर रहे हैं। खुदीराम बोस केवल सत्रह वर्ष की आयु में ही इन्हीं दुष्टों के द्वारा फांसी पर चढ़ा दिये गए थे। देश-सेवा और राष्ट्र-धर्म ही सबसे बड़ा धर्म है। भारत माता ही हमारी सबसे बडी माता है। इसका कण-कण हमारे लिए तीर्थों के समान पवित्र है।''
''पंडित जी, पंडित जी।'' किसी ने बाहर से आवाज दी।
''आओ भाई भगतसिंह, अन्दर आ जाओ।''
भगतसिंह जी भीतर आ गए। उनके साथ राजगुरु भी थे। उन्होंने आजाद से कहा, ''पुलिस को आपके आने का संदेह हो चुका है। इसलिए यहां से शीघ्र चलिये।''
पुलिस का नाम सुनते ही आजाद का हाथ पिस्तौल पर गया और बोले, ''कोई डर नहीं, आने दो।''
आजाद के पास हर समय पिस्तौल भरी हुई रहती थी। डरना वह जानते ही नहीं थे। उनका हाथ पिस्तौल पर जाते ही राजगुरु को हंसी आ गई। वह बोले, ''पंडित जी, पिस्तौल का पुलिस वालों पर भय छाया हुआ है। जब तक वे पूरी तैयारी नहीं कर लेंगे तब तक उनका साहस पंडित जी के सामने आने का नहीं हो सकता।''
''यह सब तो ठीक है, फिर भी हमें सोचकर काम करना चाहिए। तीन दिन बाद दिल्ली में सवको इकट्ठा होना है।''
वे तीनों ही वहां से चल दिये।
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