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जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद

क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद

जगन्नाथ मिश्रा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :147
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9688
आईएसबीएन :9781613012765

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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी


दो डकैती


नेताओं द्वारा सरकार विरोधी आदोलन बन्द कर दिया गया था। कांग्रेस ने कौंसिल की सदस्यता प्राप्त करके देश के हित में कार्य करने की नीति अपनाने का विचार कर लिया था।

किन्तु उग्रदल वाले अपनी क्रान्तिकारी नीति पर अटल थे। उन का विचार था, अत्याचारियों को हिंसात्मक रूप से समाप्त कर दिया जाय। सरकार जितना अधिक दमनचक्र को अपनाकर अत्याचार करेगी, जनता में उतनी ही अधिक जागृति उत्पन्न होगी। फिर एक दिन जनता स्वयं ही अपनी शक्ति द्वारा विदेशी शासन का तख्ता उलट देगी।

उन दिनों बंगाल प्रान्त में क्रान्तिकारी दल का वहुत जोर था। इस दल के कुछ लोग वनारस में आये और उन्होंने गुप्त रूप से संगठन का कार्य आरम्भ कर दिया। प्रणवेश नामक क्रान्तिकारी से चन्द्रशेखर आजाद की भेंट हो गई। वह भी दल में भर्ती हो गए। कुछ दिन बाद यहीं पर आजाद और प्रसिद्ध क्रान्तिकारी नेता रामप्रसाद ‘बिस्मिल' का एक-दूसरे से परिचय हुआ।

ये सभी क्रान्तिकारी साहसी, वीर और नवयुवक थे। भूखे-प्यासे रहकर भी, हथेली पर सिर रखकर विदेशी सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए कार्य करते थे। कुछ लोग ब्राह्मण विद्यार्थियों के जैसा भेष बनाकर धमार्थ क्षेत्रों मे भोजन कर आते, दिन-भर योग्य नवयुवकों की खोज में फिरते और अपने दल की संख्या बढ़ाते थे।

चन्द्रशेखर आजाद को इस तरह भेष बदलकर भोजन करना तनिक भी पसन्द न था। उधर दल का कार्य चलाने के लिए भी धन की बहुत आवश्यकता थी। निदान यह तय किया गया कि पूंजीपतियों के यहाँ डाके डालकर धन इकट्ठा किया जाये।

संध्या समय था। रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में, आजाद और दल के अन्य छटे हुए लोग, फतेहपुर के पास एक ग्राम में डाका डालने के लिये गए। गाँव में घुसते ही लोगों ने पूछा,  ''आप लोग कहाँ जा रहे हैं?''

''गाँव के मुखिया के यहाँ हमारा निमन्त्रण है। हम उन्हीं के यहां जा रहे हैं।'' उन्होंने उत्तर दिया।

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