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धर्म एवं दर्शन >> दिव्य संदेश

दिव्य संदेश

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :29
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9692
आईएसबीएन :978-1-61301-245

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इस समय मनुष्य-जाति की बुरी दशा हो रही है। पार्थिव प्रलोभनों की अधिकता से अभाव और अशान्ति की आग धधक उठी है।

इस समय मनुष्य-जाति की बुरी दशा हो रही है। पार्थिव प्रलोभनों की अधिकता से अभाव और अशान्ति की आग धधक उठी है। इसी जड़ भोगविलास की प्रबलता से धार्मिक जगत् में भी अन्दर-ही-अन्दर बड़ा अनर्थ होने लगा है। धर्म के नामपर आज जगत् में दानवी लीला का ताण्डव नृत्य हो रहा है, उसे देखकर कलेजा काँप उठता है। परमात्मा पर विश्वास रखकर संसार में लोकहितार्थ अपना कर्तव्यकर्म करने वालों की संख्या कम हो रही है। परस्पर एक-दूसरे का सर्वस्वान्त करने के लिये जातियाँ और राष्ट्र अपना-अपना दृढ़ संगठन कर रहे हैं तथा वे अपने सुसंगठित साधनों द्वारा दूसरों की स्वाभाविक उन्नति के मार्ग में रोड़े अटकाकर उन्हें गिराने और पददलित करनेकी घृणित चेष्टा कर रहे हैं। दम्भपूर्ण आसुरी सम्पत्ति का विकास हो चला है। विषयासक्ति और कामना ने मनुष्य के ज्ञान को ढककर उसे अपने मनुष्यत्व के पद से गिराने का प्रयत्न आरम्भ कर दिया है। सभ्यता की बाह्य सुन्दरता से दम्भ, व्यभिचार, मिथ्या अभिमान और हिंसा-प्रतिहिंसा आदि दुर्गुण उत्पन्न होकर क्रमश: उन्नत हो जगत् की मनुष्य-जाति को आध्यात्मिक आत्महत्या करने के लिये प्रोत्साहित कर रहे हैं। सर्वव्यापी, सर्वप्रिय, सर्वमय औऱ सर्वधन परमात्मा का आसन छोटा करके उसे एक छोटी-सी संकुचित सीमा के अन्दर रखने की व्यर्थ चेष्टा करके एक धर्मनामधारी दूसरे प्रतिपक्षी धर्मनामधारी के उस धर्म के नाम का नाशकर अपने धर्म के नाम की निरर्थक उन्नति करना चाहता है।

धर्म के नाम पर आज ढोंग और दम्भ का पार नहीं रहा है। परमात्मा को, उसके नाम को और उसके दिव्य धर्म को भुलाकर जगत् आज ऊपर की बातों में ही लड़ रहा है। इसीलिए न तो आज धर्मकी उन्नति होती है और न कोई सुखका साधन ही दीखता है। लोग समझते हैं कि ईश्वर केवल उनके निर्देश किये हुए स्थान और नियमों में ही आबद्ध है, अन्य सब जगह तो उसका अभाव ही है।

ऐसी स्थिति में मनुष्य-जाति के कल्याण के लिये कुछ ऐसी बातें होनी चाहिये जिनपर अमल करने से सबका कल्याण हो सकता हो। इसी उद्देश्यकी पूर्ति के लिये निम्नलिखित सात बातें “दिव्य सन्देश” के रूप में आप लोगों के सम्मुख रखी जा हैं। इनका पालन ईश्वरवादीमात्र कर सकते हैं और यह जोर के साथ कहा जा सकता है कि पालन करने से उनका परम कल्याण होने में कोई सन्देह नहीं है।

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