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धर्म एवं दर्शन >> हनुमान बाहुक

हनुमान बाहुक

गोस्वामी तुलसीदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :51
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9697
आईएसबीएन :9781613013496

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सभी कष्टों की पीड़ा से निवारण का मूल मंत्र


। 16 ।

जानसिरोमनि हौ हनुमान
सदा जनके मन बास तिहारो ।
ढारो बिगारो मैं काको कहा
केहि कारन खीझत हौं तो तिहारो ।।

साहेब सेवक नाते ते हातो कियो
सो तहाँ तुलसीको न चारो ।
दोष सुनाये तें आगेहुँको
होशियार ह्वै हों मन तौ हिय हारो ।।

भावार्थ - हे हनुमानजी! आप ज्ञानशिरोमणि हैं और सेवकों के मन में आपका सदा निवास है। मैं किसी का क्या गिराता वा बिगाड़ता हूँ। फिर आप किस कारण अप्रसन्न हैं, मैं तो आपका दास हूँ। हे स्वामी! आपने मुझे सेवक के नाते से च्युत कर दिया, इसमें तुलसी का कोई वश नहीं है। यद्यपि मन हृदय में हार गया है तो भी मेरा अपराध सुना दीजिये, जिसमें आगे के लिये होशियार हो जाऊँ।। 16 ।।

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