धर्म एवं दर्शन >> हनुमान बाहुक हनुमान बाहुकगोस्वामी तुलसीदास
|
9 पाठकों को प्रिय 105 पाठक हैं |
सभी कष्टों की पीड़ा से निवारण का मूल मंत्र
। 21 ।
बालक बिलोकि, बलि, बारेतें आपनो कियो,दीनबंधु दया कीन्हीं निरुपाधि न्यारिये ।
रावरो भरोसो तुलसीके, रावरोई बल,
आस रावरीयै, दास रावरो बिचारिये ।।
बड़ो बिकराल कलि, काको न बिहाल कियो,
माथे पगु बलीको, निहारि सो निवारिये ।
केसरीकिसोर, रनरोर, बरजोर बीर,
बाँहुपीर राहुमातु ज्यौं पछारि मारिये ।।
भावार्थ - हे दीनबन्धु! बलि जाता हूँ, बालक को देखकर आपने लड़कपनसे ही अपनाया और मायारहित अनोखी दया की। सोचिये तो सही, तुलसी आपका दास है इसको आपका भरोसा, आपका ही बल और आपकी ही आशा है। अत्यन्त भयानक कलिकालने किसको बेचैन नहीं किया? इस बलवान का पैर मेरे मस्तकपर भी देखकर उसको हटाइये। हे केशरीकिशोर, बरजोर वीर! आप रण में कोलाहल उत्पन्न करनेवाले हैं, राहुकी माता सिंहिका के समान बाहु की पीडा को पछाड़कर मार डालिये।। 21 ।।
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book