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धर्म एवं दर्शन >> हनुमान बाहुक

हनुमान बाहुक

गोस्वामी तुलसीदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :51
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9697
आईएसबीएन :9781613013496

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सभी कष्टों की पीड़ा से निवारण का मूल मंत्र


। 23 ।

रामको सनेह, राम साहस लखन सिय,
रामकी भगति, सोच संकट निवारिये ।
मुद-मरकट रोग-बारिनिधि हेरि हारे,
जीव-जामवंतको भरोसो तेरो भारिये ।।

कूदिये कृपाल तुलसी सुप्रेम-पब्बयतें,
सुथल सुबेल भालु बैठिकै बिचारिये ।
महाबीर बाँकुरे बराकी बाँहपीर क्यों न,
लंकिनी ज्यों लातघात ही मरोरि मारिये।।

भावार्थ - मुझमें रामचन्द्रजी के प्रति स्नेह, रामचन्द्रजी की भक्ति, राम-लक्ष्मण और जानकीजी की कृपा से साहस (दृढ़तापूर्वक कठिनाइयों का सामना करने की हिम्मत) है, अत: मेरे शोक-संकट को दूर कीजिये। आनन्दरूपी बंदर रोगरूपी अपार समुद्र को देखकर मन में हार गये हैं, जीवरूपी जाम्बवन्त को आपका बड़ा भरोसा है। हे कृपालु! तुलसी के सुन्दर प्रेमरूपी पर्वत से कूदिये, श्रेष्ठ स्थान (हृदय) रूपी सुबेलपर्वत पर बैठे हुए जीवरूपी जाम्बवन्तजी सोचते (प्रतीक्षा करते) हैं। हे महाबली बांके योद्धा! मेरे बाहुकी पीड़ारूपिणी लंकिनी को लात की चोट से क्यों नहीं मरोड़कर मार डालते? ।। 23 ।।

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