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धर्म एवं दर्शन >> हनुमान बाहुक

हनुमान बाहुक

गोस्वामी तुलसीदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :51
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9697
आईएसबीएन :9781613013496

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सभी कष्टों की पीड़ा से निवारण का मूल मंत्र


। 35 ।

घेरि लियो रोगनि कुजोगनि कुलोगनि ज्यौं,
बासर जलद घन घटा धुकि धाई है ।
बरसत बारि पीर जारिये जवासे जस,
रोष बिनु दोष, धूम-मूल मलिनाई है ।।

करुनानिधान हनुमान महाबलवान,
हेरि हँसि हाँकि फूँकि फौजें तैं उड़ाई है ।
खाये हुतो तुलसी कुरोग राढ़ राकसनि,
केसरीकिसोर राखे बीर बरिआई है ।।

भावार्थ - रोगों, बुरे योगों और दुष्ट लोगों ने मुझे इस प्रकार घेर लिया है जैसे दिन में बादलों का घना समूह झपटकर आकाश में दौड़ता है। पीड़ारूपी जल बरसाकर इन्होंने क्रोध करके बिना अपराध यशरूपी जवासे को अग्नि की तरह झुलसकर मूर्च्छित कर दिया । हे दयानिधान महाबलवान् हनुमानजी! आप हँसकर निहारिये और ललकार कर विपक्ष की सेना को अपनी फूँक से उड़ा दीजिये। हे केशरीकिशोर वीर! तुलसी को कुरोगरूपी निर्दय राक्षस ने खा लिया था, आपने जोरावरी से मेरी रक्षा की है।। 35 ।।

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