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धर्म एवं दर्शन >> हनुमान बाहुक

हनुमान बाहुक

गोस्वामी तुलसीदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :51
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9697
आईएसबीएन :9781613013496

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सभी कष्टों की पीड़ा से निवारण का मूल मंत्र


। 39 ।

बाहुक-सुबाहु नीच लीचर-मरीच मिलि,
मुँहपीर-केतुजा कुरोग जातुधान हैं ।
राम नाम जपजाग कियो चहों सानुराग,
काल कैसे दूत भूत कहा मेरे मान हैं ।।

सुमिरे सहाय रामलखन आखर दोऊ,
जिनके समूह साके जागत जहान हैं ।
तुलसी सँभारि ताड़का-सँहारि भारी भट,
बेधे बरगद से बनाइ बानवान हैं ।।

भावार्थ - बाहु की पीड़ारूप नीच सुबाहु और देह की अशक्तिरूप मारीच राक्षस और ताड़कारूपिणी मुख की पीड़ा एवं अन्यान्य बुरे रोगरूप राक्षसों से मिले हुए हैं। मैं रामनाम का जपरूपी यज्ञ प्रेम के साथ करना चाहता हूँ पर कालदूत के समान ये भूत क्या मेरे काबू के हैं? (कदापि नहीं।) संसार में जिनकी बड़ी नामवरी हो रही है वे (रा और म) दोनों अक्षर स्मरण करने पर मेरी सहायता करेंगे। हे तुलसी! तू ताड़का का वध करनेवाले भारी योद्धा का स्मरण कर, वह इन्हें अपने बाण का निशाना बनाकर बड़ के फल के समान भेदन (स्थानच्युत) कर देंगे।। 39 ।।

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