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धर्म एवं दर्शन >> हनुमान बाहुक

हनुमान बाहुक

गोस्वामी तुलसीदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :51
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9697
आईएसबीएन :9781613013496

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सभी कष्टों की पीड़ा से निवारण का मूल मंत्र


। 42 ।

जिओं जग जानकीजीवनको कहाइ जन,
मरिबेको बारानसी बारि सुरसरिको ।
तुलसीके दुहूँ हाथ मोदक है ऐसे ठाउँ,
जाके जिये मुये सोच करिहैं न लरिको ।।

मोको झूठो साँचो लोग रामको कहत सब,
मेरे मन मान है न हरको न हरिको ।
भारी पीर दुसह सरीरतें बिहाल होत,
सोऊ रघुबीर बिनु सकै दूर करिको ।।

भावार्थ - जानकी-जीवन रामचन्द्रजी का दास कहला कर संसार में जीवित रहूँ और मरने के लिये काशी तथा गंगाजल अर्थात् सुरसरितीर है। ऐसे स्थान में (जीवन-मरणसे) तुलसी के दोनों हाथों में लड्डू है, जिसके जीने-मरने से लडके भी सोच न करेंगे। सब लोग मुझको झूठा-सच्चा राम का ही दास कहते हैं और मेरे मन में भी इस बात का गर्व है कि मैं रामचन्द्रजी को छोड़कर न शिव का भक्त हूँ न विष्णुका। शरीर की भारी पीड़ा से विकल हो रहा हूँ उसको बिना रघुनाथजी के कौन दूर कर सकता है? ।। 42 ।।

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