धर्म एवं दर्शन >> हनुमान बाहुक हनुमान बाहुकगोस्वामी तुलसीदास
|
9 पाठकों को प्रिय 105 पाठक हैं |
सभी कष्टों की पीड़ा से निवारण का मूल मंत्र
। 14 ।
करुना निधान, बलबुद्धिके निधान, मोद-महिमानिधान, गुन-ज्ञानके निधान हौ ।
बामदेव-रूप, भूप रामके सनेही, नाम
लेत-देत अर्थ धर्म काम निरबान हौ ।।
आपने प्रभाव, सीतानाथके सुभाव सील,
लोक-बेद-बिधिके बिदुष हनुमान हौ ।
मनकी, बचनकी, करमकी तिहूँ प्रकार,
तुलसी तिहारो तुम साहेब सुजान हौ ।।
भावार्थ - तुम दया के स्थान, बुद्धि-बलके धाम, आनन्दमहिमा के मन्दिर और गुण-ज्ञान के निकेतन हो; राजा रामचन्द्र के स्नेही, शंकरजी के रूप और नाम लेने से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष के देनेवाले हो। हे हनुमानजी! आप अपनी शक्ति से श्रीरघुनाथजी के शील-स्वभाव, लोक-रीति और वेद-विधि के पण्डित हो! मन, वचन, कर्म तीनों प्रकार से तुलसी आपका दास है आप चतुर स्वामी हैं। अर्थात् भीतर-बाहर की सब जानते हैं।। 14 ।।
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book