लोगों की राय

धर्म एवं दर्शन >> हनुमान बाहुक

हनुमान बाहुक

गोस्वामी तुलसीदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :51
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9697
आईएसबीएन :9781613013496

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

105 पाठक हैं

सभी कष्टों की पीड़ा से निवारण का मूल मंत्र


। 2 ।

स्वर्न-सैल-संकास कोटि-रबि-तरुन-तेज-घन ।
उर बिसाल, भुजदंड चंड नख बज्र बज्रतन ।।

पिंग नयन, भृकुटी कराल रसना दसनानन ।
कपिस केस, करकस लँगूर, खल-दल बल भानन ।।

कह तुलसिदास बस जासु उर मारुतसुत मूरति बिकट।

संताप पाप तेहि पुरुष पहिं सपनेहुँ नहिं आवत निकट।।

भावार्थ - वे सुवर्णपर्वत (सुमेरु) के समान शरीरवाले, करोड़ों मध्याह्न के सूर्य के सदृश अनन्त तेजोराशि, विशालहृदय, अत्यन्त बलवान् भुजाओंवाले तथा वज्र के तुल्य नख और शरीरवाले हैं । उनके नेत्र पीले हैं, भौंह, जीभ. दाँत और मुख विकराल हैं, बाल भूरे रंग के तथा पूँछ कठोर और दुष्टों के दल के बल का नाश करनेवाली है। तुलसीदासजी कहते हैं - श्रीपवनकुमार की डरावनी मूर्ति जिसके हृदय में निवास करती है, उस पुरुष के समीप दु:ख और पाप स्वप्न में भी नहीं आते।। 2 ।।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book