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			 धर्म एवं दर्शन >> हनुमान बाहुक हनुमान बाहुकगोस्वामी तुलसीदास
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सभी कष्टों की पीड़ा से निवारण का मूल मंत्र
    
    
। 36 ।
रामगुलाम तुही हनुमानगोसाँइ सुसाँइ सदा अनुकूलो ।
पाल्यो हौं बाल ज्यों आखर दू
पितु मातु सों मंगल मोद समूलो ।।
बाँहकी बेदन बाँहपगार
पुकारत आरत आनँद भूलो ।
श्रीरघुबीर निवारिये पीर
रहौं दरबार परो लटि लूलो ।।
भावार्थ - हे गोस्वामी हनुमानजी! आप श्रेष्ठ स्वामी और सदा श्रीरामचन्द्रजी के सेवकों के पक्ष में रहनेवाले हैं। आनन्द-मंगल के मूल दोनों अक्षरों (राम-नाम) ने माता-पिता के समान मेरा पालन किया है। हे बाहुपगार (भुजाओंका आश्रय देनेवाले)! बाहुकी पीड़ा से मैं सारा आनन्द भुलाकर दु:खी होकर पुकार रहा हूँ। हे रघुकुलके वीर! पीडाको दूर कीजिये, जिससे दुर्बल और पंगु होकर भी आपके दरबार में पड़ा रहूँ।।36 ।।
						
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