व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> हौसला हौसलामधुकांत
|
9 पाठकों को प्रिय 198 पाठक हैं |
नि:शक्त जीवन पर लघुकथाएं
विकलांगता : अभिशाप नहीं चुनौती
- डॉ. हनुमंत राय नीरव
भारत की सवा अरब आबादी में दस प्रतिशत के लगभग विकलांग हैं। इनमें मानसिक रूप से विकलांगों की संख्या दो प्रतिशत के लगभग है विकलांग तीन प्रकार के होते हैं- जन्मत:, दुर्घटनावश और बलात्। इनमें जन्मत: विकलांग शरीरिक और मानसिक दोनों रूप से होते हैं। मानसिक रूप से विकलांग मंदबुद्धि होते हैं। पहले हमारे समाज में विकलांगों के प्रति अमानवीय कटु व्यवहार व्याप्त था। भ्रमवश लोगों के मनों में ऐसी मान्यता थी कि ये पूर्वजन्मों के अपकर्मों की सजा भुगतने के लिए ईश्वर द्वारा अभिशापित होकर, विकलांग रूप में उत्पन्न हुए हैं। कभी-कभी भ्रमवशात् इन्हें भूत-प्रेत की छाया से ग्रस्त भी माना जाता था। निष्कर्ष यह कि विकलांगों को अपने अपकर्मों की सजा भुगतनी है और अकेले ही भुगतनी है, आधुनिक युग में इस तरह के अमानवीय व्यवहार में काफी परिवर्तन आ चुका है।
शारीरिक रूप से विकलांग बच्चे कुपोषण के कारण उष्पन्न होते हैं। जैसे विटामिन ए की कमी से बच्चे अंधत्व के शिकार हो जाते हैं, प्रसव के समय किसी प्रकार की असावधानी के कारण भी बच्चे विकलांग हो जाते हैं। पौष्टिक भोजन की कमी और नियमित आवश्यक टीकाकरण में बढती हुई लापरवाही भी विकलांगता के बड़े कारण हैं। पोलियो इसी कारण होता है। इस तरह के विकलांग बच्चे निम्न आयवर्ग से आते हैं। आधुनिक यांत्रिक युग में मशीनों के कारण शारीरिक विकलांगता बड़ी है। पशुओं का चारा काटने वाली मशीन पर काम करने वालों का अक्सर हाथ का पंजा कटा मिलता है। दुतगति के वाहनों ने यातायात की दुर्घटना की संख्या बढ़ा दी है। युद्ध और दंगों की हिंसा ने भी लोगों को विकलांग बनाने में अपना अशुभ योगदान खूब दिया है, दैनिक जीवन में होने वाली ये दुर्घटनाएँ असावधानी तथा पर्याप्त प्रशिक्षण के अभाव के कारण होती हैं। इन कारणों को हम चाहकर भी दूर नहीं कर सकते, परन्तु प्रयास करके कम अवश्य कर सकते हैं।
|