व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> हौसला हौसलामधुकांत
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नि:शक्त जीवन पर लघुकथाएं
बचपन से अपने गाँव में एक हाथ कटे व्यक्ति को देखता था जो एक हाथ से जमीन खोदता, गन्ने के खेत का तमाम काम करता, वह मुझे एक प्रेरणा का स्रोत लगता। गाँव में एक और शख्स था जिसकी आँखों की रोशनी बचपन में चली गई। उसने किसी से भिक्षा नहीं माँगी। दरिद्र परिवार का वह व्यक्ति ढोल बजाकर तथा कुर्सियों एवं चटाई बुनकर अपना तथा अपनी बूढ़ी माँ का गुजारा करता था।
कई बार आपने टी.वी. पर किसी व्यक्ति को पैरों से तबला बजाते या पैरों से लिखते या फिर पैरों से चित्रकारी करते देखा होगा। वास्तव में ये व्यक्ति हमारे लिए प्रेरणा स्रोत हैं, मात्र शारीरिक विकलांग व्यक्ति के लिए ही नहीं वरन् सामान्य लोगों के लिए भी।
अपने एक हाथ से बटन खोलने, रोटी का ग्रास तोड़ने, कमीज की जेब से पेन निकालकर, खोलकर लिखने, एक हाथ से बैग खोलकर किताब निकालकर पढ़ने, रसोई में हाथ से रोटी बनाने, सब्जी काटने जैसे कार्य करके देखिए, फिर कल्पना कीजिए कि हम मात्र एक दिन ये सब कार्य आसानी से एक हाथ से नहीं कर सकते फिर जिन्होंने एक हाथ हमेशा के लिए गँवा दिया, कैसे वह व्यक्ति अपने कार्य करता होगा?
अपनी आँखें बंद करिए यह क्रिया आप कितनी अवधि तक कर सकते हैं? पांच मिनट, दस मिनट या उससे कुछ अधिक? अब सोचिए आपको कोई सामान उठाकर एक कमरे से दूसरे कमरे तक जाना है बिना आँखें खोले, क्या कठिनाइयाँ आयेंगी? टकराओगे, और सामान जो साथ में रखा है गिरा दोगे। अब कल्पना करिए जिसकी आँखों की रोशनी चली गई उसे तो ये काम रोज करने होंगे।
अभी हाल ही में टी.वी पर एक शो देखा, उसमें विकलांग बच्चों (मूक-बधिर) के समूह ने नृत्य प्रस्तुत किया। 'डान्स इण्डिया डान्स' में एक अस्थि विकलांग जिसके पैर नाम मात्र को थे। उसने हिप हॉप डान्स करके दिखा दिया कि जज्बे के सामने कुछ भी काम मुश्किल नहीं।
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