व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> हौसला हौसलामधुकांत
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नि:शक्त जीवन पर लघुकथाएं
समर्पण
रविवार के दिन डॉ० सारांश अपनी बेटी का होमवर्क करा रहा था। चिंकी की नजर
जंगले में गुटर-गूं, गुटर-गूं, करते कबूतर पर पड़ी तो बोल पड़ी- पापा जरा इस
लंगड़े कबूतर को देखो तो.....।
चिंकी इसका क्या देखूं?
इसका एक पांव नहीं है, प्लीज मेरा लगा दो ना......।
'तो तुम एक पांव से कैसे चलोगी?
कुछ दिनों में नया पाव आ जाएगा.......।
ऐसे कहीं दूसरा पांव भी आता है?
क्यों नहीं आता.... देखो पिछले दिनों मेरा यह दांत टूट गया था फिर नया कैसे आ गया .....?
डॉ. सारांश को कोई जवाब न सूझा परन्तु वह अपनी बेटी के समर्पण भाव को देखकर आत्म-विभोर हो गया।
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