व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> हौसला हौसलामधुकांत
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नि:शक्त जीवन पर लघुकथाएं
काश! वह विकलांग होता
चारों बेरोजगार दोस्त तालाब के किनारे बैठे बातें कर रहे थे।
पहला दोस्त- यार, बीए, करके हमने क्या पाया। अब हम पेट भरने के लिए मजदूरी भी नहीं कर सकते......।
दूसरा दोस्त- ना हमें कोई नोकरी देता जिससे हमारा गुजारा तो चल जाए।
तीसरा दोस्त- देखो भाई, मैंने तो कालेज छोड़ते ही एक प्राईवेट नौकरी पकड़ ली थी। जब तक ढंग की नौकरी न मिले, काम तो चल जाएगा। बेकार रहने का गम तो नहीं खाता।
चौथा दोस्त- अबे वो लंगड दीनू... हमसे तो वही अच्छा निकला... फटाफट बैंक में क्लर्क बन गया। मजे हो गए उसके तो.......
तीसरा दोस्त- उसकी बात अलग है बेचारा विकलांग कोटे में भर्ती हुआ है।
चौथा दोस्त- कुछ भी हो, रहा तो हमसे अच्छा.. काश! हमारी भी एक टांग टूट जाती।
तीसरा दोस्त- नहीं दोस्त, अपंग शरीर की वेदना आप नहीं जान सकते। कदम-कदम पर सारी उमर की पीड़ा, ताना, हताशा, कुण्ठा, न जाने कौन-कौन से दर्द। उसके बदले सरकार ने उसे लाभ दिया है तो हमें उससे तुलना नहीं करनी चाहिए।
सारे दोस्त- भाई, आपने सच कहा। इन लोगों की जितनी भी मदद की जाए कम है।
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