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हौसला

मधुकांत

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :134
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9698
आईएसबीएन :9781613016015

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नि:शक्त जीवन पर लघुकथाएं

बैशाखियाँ


वे तीनों होस्टल के एक कमरे में रहते थे। निर्मल, निकेतन व निरंजन। वर्षों पहले निकेतन का एक पांव दुर्घटना में चला गया था इसलिए वह वैशाखियों के सहारे चलता था।

निर्मल निकेतन से प्यार करता था। वह सदैव उसका ख्याल रखता। एक दिन उसकी बैशाखियां इधर-उधर रखी गयी तो वह निर्मल को अपनी पीठ पर लाद कर लाया था।

निरंजन निकेतन से घृणा करता था, विशेषकर उसकी बैशाखियों से। रात को जब निकेतन बाथरूम जाता तो निरंजन की आँख खुल जाती, फिर तो मन ही मन देर तक उसको गालियाँ बकता रहता।

निर्मल जानता था निकेतन बड़ा ही स्वाभिमानी दोस्त है, इसलिए उसने फैसला किया, बिना किसी को कुछ बताए एक रात को निकेतन की पुरानी बैशाखी गायब कर देगा तथा उसके पास चुपचाप नयी बैशाखियां रख देगा।

निकेतन की बैशाखियों का शोर निरंजन के लिए भी सिरदर्द बना हुआ था, उसने भी फैसला किया एक रात इस साले लंगड़ की बैशाखियां चुराकर सामने बनी पानी की टंकी में डाल देगा। न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी।

उस रात एक बार भी बैशाखियों की आवाज नहीं आयी। सुबह तीनों आश्चर्य से एक दूसरे का मुंह ताक रहे थे। एकाएक निकेतन बोल पड़ा- प्रभु तुम्हारी लीला अपरंपार है, नयी बैशाखियां रखकर पुरानी चुरा ले गए....।


० ० ०

 

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