व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> हौसला हौसलामधुकांत
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नि:शक्त जीवन पर लघुकथाएं
कमली
'दुष्ट... निगोड़ी... तेरे मुंह ने फाड़ दूंगी....’ गुस्साई मां ने कमली के
हाथ से बूंदी का लड्डू छीन लिया जिसे वह अभी अभी भीख में मांगकर लायी
थी...।
कभी कमलू के लिए भी कुछ बचाकर रखा कर... तेरा पेट है या झेरा.... झोपड़ी से निकलते हुए मां का स्वर अधिक तीखा हो गया था..... कमलू के पांव धोने के लिए गरम पानी रख दे, मैं उसको ढूंढ कर लाती हूँ।
सुबकती हुई कमली को बाहर जाती मां के पैरों में पड़ी बिवाइयां दिखाई दीं। अपने पांवो में पड़ी बिवाइयों का दर्द भूलकर वह भाई के पांव धोने के लिए पानी गरम करने लगी।
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