व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> हौसला हौसलामधुकांत
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नि:शक्त जीवन पर लघुकथाएं
अंगूठा
अंगूठा गुरुदक्षिणा में देने के बाद भील अपने गुरु की पाषाण प्रतिमा के
सम्मुख आकर विलाप करने लगा- गुरुदेव अब मैं कभी धनुष नहीं चला पाऊंगा...।
प्रतिमा के होंठ फड़फड़ाए..... एकदम गलत। बालक, धनुष प्रतियोगिता केवल अंगूठे से नहीं जीती जाती। हौसला, अभ्यास और एकाग्रता चाहिए। तुममें सब कुछ है। उठो निराशा का त्याग करो, अब भी तुम दुनिया के श्रेष्ठ धनुर्धर बने रह सकते हो। अपना अंगूठा त्यागकर गुरु के प्रति जो समर्पण भाव तुमने दिखाया है, वह तुम्हें कमजोरी नहीं ताकत देगा। तुम्हारा यह व्यवहार शिष्य परम्परा को उच्च स्थान पर स्थापित करेगा। उठाओ अपना धनुष और करो अभ्यास।
नए उत्साह के साथ एकलव्य की बाजू फड़फड़ाने लगी। यकायक उसे लगा उसकी हथेली में नया अंगूठा निकल आया है।
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